इंडिया, एक ऐसी कंट्री है, जहां कई अनसुनी और अनकही बातें होती है। कुछ ऐसी जो कभी किसी ने न देखी होंगी और कुछ अनजानी सी। कहते तो हैं कई लोग की पिशाच, व्रिक और डाकिनी जैसी कोई चीज नहीं होती। पर आज भी ये सब हमारे बीच सांस ले रहें हैं।
नहीं ये सब चीजें सिर्फ वेस्टर्न लोगों की कहानियां नही हैं पर हकीकत हैं। कई पुराने शहर जो सदियों पुराने हैं, वो सब आज भी इन सब चीजों के गवाह हैं। कई पैरानॉर्मल रिसर्चर्स और इतिहासकार ये जानने में लगे हैं की इन सब चीजों का वजूद है या नही? और अगर है, तो ये सब आएं कहां से? आपका क्या मानना है?
आज २०२२ का नया साल है, पर ये कहानी वैसे तो सदियों पुरानी है पर इसका पहला चैप्टर लिखा गया २०१४ में जब माया अपने परिवार के साथ डलहौजी शिफ्ट हुई।
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एक बर्फीली शाम थी और एक खाली रोड पर एक लाल रंग की गाड़ी सर.... सर.... करके भाग रही थी। गाड़ी मे पांच लोग बैठे थे। जिनमें ड्राइविंग सीट पर करीबन ४२ साल के एक आदमी थे। उनकी दाई तरफ एक ४० वर्षीय औरत और पैसेंजर सीट पर तीन बच्चे, एक लड़का और दो लड़कियां। ड्राइविंग सीट पर जो बैठे थे उनका नाम दुष्यंत सिंह है। वो २५ साल बाद अपने शहर डलहौजी जा रहें हैं। एक ज़मीन खरीदी है, जो टिंबर प्रोजेक्ट के लिए यूज होगी। दाई ओर उनकी पत्नी, वसुधा, एकेडमिक सेक्टर में काफी समय से काम कर रहीं हैं। यहीं डलहौजी के एक स्कूल में जॉब करने का प्लान बनाकर दिल्ली से पति के साथ उनके शहर जा रही हैं।
साथ मे दो बेटियां है, माया और अनिका। उन्ही के साथ पीछे पैसेंजर सीट पर घर का सबसे छोटा सदस्य और दुष्यंत का बेटा आरुष भी बैठा है। आरुष को देख कर पता चल रहा था कि वो काफी खुश है क्योंकि फैमिली साथ में हिल स्टेशन जा रही है।
जहां आरुष खुश है, वहीं माया शांत है और थोड़ी दुखी भी, वहीं अनिका को देख कर ऐसा लगता है जैसे कुछ अलग हुआ ही नहीं। माया उदास इसलिए है क्योंकि अपनी पूरी लाइफ दिल्ली में बिताने के बाद अब एक नए और अनजान शहर में जाना पड़ रहा है। सारे जानने वाले, सारे दोस्त और सारी यादें वहीं दिल्ली मे छूट गईं। और अब क्योंकि उसके पापा का काम यहीं होगा तो शायद वापस जाना कभी हो भी न।
एक ही बात की खुशी है, माया को, के साथ में अपना कैमरा ले आई है। रास्ते भर अपना मूड हल्का करने के लिए वीडियो रिकॉर्ड करी और कई सारी फोटोज भी खींची।
अनिका, वहीं दूसरी तरफ, हमेशा की तरह एक नॉवेल हाथ में रख कर पढ़ रही थी। ऐसा समझो की सारा ध्यान उसी में हो। आरुष बर्फ को देख कर एक्साइटेड था। वो इंतजार नहीं कर पा रहा था की कब नए घर मे जाना होगा।
शांत माहौल में अचानक से रौनक आई जब वसुधा के मोबाइल पर कुछ नोटिफिकेशंस आए। मोबाइल ऑन करा तो चार खुशखबरी एक साथ। वसुधा ने जिस स्कूल मे एस ए टीचर अप्लाई किया था उस स्कूल ने उसकी एप्लीकेशन अप्रूव कर ली और आरुष का उसी स्कूल में एडमिशन हो गया। दूसरी खुशखबरियां कि ईस्टर्न ग्रूव हाई नाम के कॉलेज में माया और अनिका को स्कॉलरशिप मिली। माया को फाईन आर्ट्स की क्लास में और अनिका को अकाउंट्स की क्लास में।
सब ये खबर सुन कर काफ़ी खुश हुए। माया भी कुछ पल अपनी परेशानी को भुला कर ये सोचने लगी थी कि नया कॉलेज कैसा होगा? कौनसे लोग मिलेंगे? क्या कोई नए दोस्त बनेंगे? क्या कुछ मिस्टीरियस पता चलेगा?
अनिका भी मन में सोचती है की कॉलेज में क्या लाइब्रेरी होगी? और कौनसी नई बुक्स पढ़ने को मिलेंगी?
यही सब सोचते-सोचते एक दम से गाड़ी रुकती है। सब अपनी-अपनी सोच से बाहर आते हैं और देखते हैं की आखिर नया घर आ गया।
उतर कर सब एक दूसरे को घबराहट और हल्की खुशी वाली नज़रों से देखते हैं। गाड़ी पार्क करके दुष्यंत फाइनली दरवाजा खोलते हैं और नया घर जो उनके लिए तो उनका पुराना ही घर था, सबको दिखाते हैं।
दुष्यंत- तो मेरी प्यारी फैमिली कैसा लगा नया घर?
घर दुष्यंत ऑलरेडी एक हफ्ते पहले आकर साफ करा चुके थे और सामान भी सब नया जैसा ही लग रहा था। उसे देख कर वसुधा बोलती हैं।
वसुधा- यार क्या दुष्यंत तुम तो बड़े छुपे रुस्तम हो, बताया क्यों नहीं पहले इतना बड़ा और आलीशान बांग्ला है तुम्हारा यहां पर?
माया और आरुष (एक साथ)- व्हाट पापा दिस इज़ नॉट डन!
अनिका वैसे ही चुप रहती है जैसे उसे कुछ अलग लगा ही न हो।
दुष्यंत सबको शांत करा कर बोलता है।
दुष्यंत- अच्छा, अच्छा सुनो, काफ़ी लंबा सफ़र था सब थके हुए हैं। सबको अब आराम करना चाहिए।
उतने में ही एक बुज़ुर्ग दरवाजा खटखटाते हैं और दरवाजा खोल कर बोलते हैं।
बुज़ुर्ग को देख कर दुष्यंत काफ़ी खुश हो जाते हैं। बुज़ुर्ग भी दुष्यंत की ओर देख कर भावुक हो जाते हैं और कहते हैं।
काका- अरे मालिक आप आ गए? २५ बरस हो गए देखे हुए। आपके ही इंतजार में था कि कब आप वापस आयेंगे।
दुष्यंत भी उनको प्रणाम करके कहते हैं।
दुष्यंत- क्या काका आप भी? अरे, आप पहले सबसे मिलिए तो। ये मेरी पत्नी है, वसुधा। ये दोनों बच्चियां, माया और अनिका और वो है मेरा बेटा, आरुष।
काका- अरे बबुआ काहे इस गरीब को इतनी इज्जत देते हो? हम नौकर हैं और आप मालिक।
दुष्यंत- नहीं काका आप बड़े हैं और पिताजी के जाने के बाद आप ही ने तो घर की देखभाल करी है। अच्छा छोड़िए ये सब, ये बताइए घर पर सब ठीक?
काका- हां बिटुआ अब हम ही रहते हैं घर में। बेटा-बहु तो बंबई चले गए काम के सिलसिले में। अब तो हम दादा भी बन गए हैं।
दुष्यंत- मुबारक हो। आपने सबके कमरे तैयार करा दिए न काका?
काका- हां बबुआ। आपका और बहुरानी का कमरा वहीं आपके ही पुराने कमरे में है। माया बिटिया का कमरा दूसरे मंजिल पर बाईं ओर है और अनिका बिटिया का दाईं ओर। आरुष बेटा का कमरा उन दोनों कमरों के बीच में।
दुष्यंत- अच्छा काका ठीक है। रात के १० बज रहे हैं और आपको तो पता ही है कि डलहौजी में रात का कोहरा जानलेवा हो सकता है। आराम से जाइयेगा।
काका- हां बबुआ राधेकृष्णा।
दुष्यंत- राधेकृष्णा काका।
काका वहां से चले जाते हैं।
दुष्यंत- चलो सब, रात बहुत हो गई है। काका ने बताया ना कि किसका कमरा कहां है। चलो सब सो जाओ।
ये सब बातें हुई ही थी कि सब अपने कमरे में सोने चले जाते हैं। पर माया, एक तो दिल्ली की यादों से परेशान थी ही और दूसरी ओर दुष्यंत की बात ने उसकी नींद भी उड़ा दी थी। आखिर वो सोती कैसे?
माया मन ही मन सोच रही थी कि दुष्यंत ने काका से वो बात क्यों कही? सोचते-सोचते कब १२ बज गए उसे पता ही नहीं चला। एक तो ठंड ऊपर से डलहौजी के रात का कोहरा। माया के मन में अलग-अलग विचार आ रहें थें। लेकिन सोना ज़रूरी था क्योंकि अगले दिन सभी को डलहौजी घूमने भी जाना था। तो माया ये सब सोचते-सोचते सो गई।
ट्रिंग..... ट्रिंग..... अलार्म बजने की आवाज़ से फाइनली माया उठी और देखा सब उसके ही कमरे में थे।
वसुधा- तो अब उठ ही गई मेरी स्लीपिंग ब्यूटी? बच्चा ९ बज रहें हैं। रात को नींद नहीं आई?
दुष्यंत- अरे वसुधा! बस करो। मत चिढ़ाओ उसे। मुझे पता है कि नया शहर है। एडजस्ट होने में थोड़ा टाइम तो लगेगा। गुड मॉर्निंग बेटा।
आरुष- देखो माया दी आपका कूल भाई लेट लतीफ़ आज आपसे भी पहले उठ गया।
अनिका- घूमने चलना है या मैं जाऊं अपनी बुक रीड करने?
सब एक साथ- ओफो! देवी मां चल रहें हैं।
माया- मुझे १० मिनट दो मैं आती हूं तैयार होकर।
माया वैसे ही लेट हो चुकी थी। जल्दबाजी में तैयार हुई और नीचे पहुंची। कैमरा तो लिया पर एक्स्ट्रा बैटरीज ले जाना भूल गई।
दुष्यंत खुश थें कि फाइनली सब खुश हैं और अपने शहर डलहौजी में वापस आ गए हैं। मन ही मन में उम्मीद कर रहें हैं की बस वो टिंबर प्रोजेक्ट वाली लैंड अप्रूव हो जाए।
दूसरी ओर अपनी फैमिली के साथ फाइनली इतने दिनों बाद घूमने का मौका मिला था उन्हें। दुष्यंत ने अपने शहर की सारी फेमस टूरिस्ट डेस्टिनेशन फैमिली के साथ घूमी।
पहले वो लोग सेंट० जोन्स चर्च गए, फिर गरम सड़क पर वॉक करी, कालातोप वाइल्डलाइफ सैंक्चुअरी घूम कर दोपहर में गंजी पहाड़ी जाने ही वाले थे के तभी दुष्यंत को एक कॉल आई जिसे सुनकर वो बहुत खुश हुए। अचानक से, उन्हें वापिस जाना होगा, वो मीटिंग अटेंड करने। उन्होंने सब को बताया। पर माया, आरुष और वसुधा को काफ़ी मन था सीनिक ब्यूटी देखने का। तो उन्होंने जाने से इंकार कर दिया।
दुष्यंत दुविधा में थे कि क्या करें? क्योंकि वो मीटिंग भी इंपोर्टेंट थी और फैमिली के साथ ये ट्रिप भी। जाने की सोचने ही वाले थे कि माया के कैमरा की बैटरी लो हो गई और न चाहते हुए भी सबको वापस जाना पड़ा।
घर पहुंच कर सब अपने कमरे में चले गए। अनिका हमेशा की तरह एक मोटी किताब पढ़ने लगी। आरुष थक गया था तो अपने कमरे में जाकर सो गया। वसुधा लंच की तैयारी करने लगी। माया अपने कमरे में जाकर मोबाइल पर सर्च करने लगी की आस-पास कुछ पेंटिंग या फोटोग्राफी से रिलेटेड कोई दुकान थी या नहीं। सर्च करते हुए उसकी नज़र मॉल रोड पर ही एक कैमरा की शॉप पर गई। शॉप का नाम 'गोयल्स फोटो स्टूडियो' था। हालांकि, माया अब १९ साल की हो गई थी पर वो गाड़ी नहीं चला सकती थी। तो आते ही तीनों बच्चों के लिए दुष्यंत ने साइकिल का इंतजाम कर दिया था।
माया को वैसे भी अपने कैमरा के लिए नया लैंस लेने जाना था। तो झट से किचन में काम करती वसुधा के पास जाकर पप्पी फेस बना लिया।
वसुधा- ओय बदमाश! ऐसी शक्ल क्यों बना रखी है?
माया- मां! सुनो ना।
वसुधा- हां सुन तो रही हूं। क्या चाहिए बता?
माया- बस छोटा सा... टीनी टाइनी... फेवर... परमिशन चाहिए।
वसुधा- कौनसी परमिशन?
माया- वो न! आपको तो पता ही है मेरा सबसे प्यारा दोस्त मरा पड़ा है।
वसुधा- हाय... पागल किसके बारे में बात कर रही है?
माया (कैमरा हाथ में लेते हुए)- अरे ये मां! चार्ली।
वसुधा- अरे पागल कैमरा का ऐसा नाम कोई रखता है भला? और हां क्या हुआ है इसे?
माया- मां आप चार्ली के बारे में कुछ मत कहो। इसकी बैटरी खत्म हो गई है और यू नो मैंने इससे आने से पहले प्रोमिस किया था कि नया लेंस दिलवाऊंगी। वो न यहां पास में मॉल रोड पर ही एक कैमरा की दुकान है। जाने दो ना प्लीज़।
वसुधा- पागल हो गई है माया? बेटा नया शहर है। रास्ते भी नहीं पता अभी तो ढंग से। कल ही तो आए हैं। तू खो गई तो? और मैं जाने भी दूँ तो जायेगी कैसे?
माया- मां प्लीज़ न। पापा ने साइकिल तो दे ही दी है। मैं नहीं खाऊंगी पक्का और डिनर तक वापस भी आ जाऊंगी। प्लीज़ न मां। प्लीज़... प्लीज़... प्लीज़... चार्ली ही तो आखिरी दोस्त बचा है मेरा।
ये कहकर माया शांत हो जाती है और फिर उदास सी हो जाती है। ये देख कर वसुधा भी भावुक हो जाती है। आखिर मां तो मां है।
वसुधा- अच्छा चल चली जा। फोन साथ ही रखियो और अनजान लोगों से ज़रा दूर रहियो। डिनर तक आ जाइयो।
वसुधा को गले लगाकर माया कहती है।
माया- थैंक यू... थैंक यू... थैंक यू.... मां यू आर दी बेस्ट। हां डिनर तक आ जाऊंगी।
वसुधा- अच्छा रुक।
माया- अब क्या मां?
वसुधा- ओय हीरोइन! ये ले कुछ पैसे रख ले। खा लियो कुछ।
माया- लव यू मां।
ये कहकर माया अपनी साइकिल उठाकर रास्ता पूछते-पूछते किसी तरह मॉल रोड तक पहुंच जाती है। सबसे पहले रुककर पानी पीती है और फिर नज़र घुमाती है मॉल रोड की चहल-पहल पर। चारों तरफ लोग, रंगबिरंगी मॉल रोड और लोग हर चीज़ चाव से खरीदते हुए। वहीं कोने में उसे सबसे पहले एक आइसक्रीम की दुकान दिखती है। वो रुककर वहीं से आइसक्रीम ले लेती है। आइस्क्रीम खाते हुए माया कैमरा की दुकान ढूंढने लगती है।
माया (अपने आप से)- अरे यार एड्रेस तो यहीं का है, ये दुकान आखिर हैं कहां? लो अब तो ये आइसक्रीम भी खत्म हो गई, पर ये दुकान नहीं मिली।
तभी उसकी नजर एक पुरानी सी दुकान पर जाती है। देखने में तो दुकान विंटेज लग रही थी। ग्लास की बड़ी खिड़कियों के अंदर शोकेस में ऐसे कैमरा रखें हुएं थें जो उसने कभी नहीं देखे थे। वो सब भी विंटेज ही लग रहे थे। शॉप के दरवाजे को ध्यान से देखा तो उसपर ओपन ही लिखा था।
तो माया जल्दी से अन्दर चली जाती है। अंदर जाकर देखती है तो उसे कोई नज़र नहीं आता। एक दम से शॉप की सारी लाइटें बुझ जाती हैं। सामने देखती है तो दो बड़ी-बड़ी आंखें उसे घूर रहीं होती हैं। वो आंखें ऐसी लग रहीं थीं मानो पीले रंग की हों और चमक रहीं हों।
ये देख कर माया घबरा जाती है और वापस भागने के लिए मुड़ती है तो किसी से टकरा जाती है। उतने में लाइटें फिर जल जाती हैं।
आंखें खोलती है तो देखती है की एक हैंडसम सा लड़का सामने खड़ा है। करीबन हाइट में ६ फीट का तो होगा ही। शक्ल देख कर थोड़ा ब्लश तो करती है पर फिर अभी जो हुआ वो याद करके घबरा जाती है। वो लड़का जाने ही वाला होता है कि माया पीछे से बुलाकर उसे रोकती है।
माया- ओ मिस्टर! कस्टमर आया है। कुछ लेना है मुझे।
लड़का- मैडम फर्स्ट ऑफ़ ऑल मेरा नाम विक्रांत है और सेकंड ऑफ़ ऑल आपको बाहर साइन नही दिखा की अभी लंच ब्रेक चल रहा है। तो नो कस्टमर्स अलाउड।
माया- अरे यार कैसी बात कर रहे हो? साइन देख कर ही तो अंदर आई हूं। लंच कर तो नहीं रहे तुम। मुझे चार्ली के लिए बैटरी और उसका लेंस खरीदना है। सो, विल यू प्लीज़ डू दी ऑनर्स?
विक्रांत- मैडम, कहा न आपसे अभी लंच ब्रेक चल रहा है। आप एक घंटे बाद आइएगा अपने चार्ली को लेकर।
माया- ओह हैलो, पहली बात माया नाम है। दूसरी बात जब साइन ओपन का लगा है और आप लंच कर नहीं रहें हो तो जो मुझे चाहिए वो देने में क्या प्रॉब्लम है?
ये सब नोकझोक चल ही रही होती है की खाना खा कर शॉप के मालिक, विक्रांत के पापा, अरुण, वहीं आ जाते हैं अंदर से।
अरुण- विक्रांत ये सब क्या चल रहा है?
विक्रांत- पापा कुछ नहीं, ये कस्टमर लंच के टाइम पर अंदर आ गई है। मैं कह रहा हूं एक घंटे बाद आने को, पर सुन ही नही रही।
अरुण- तुझे कितनी बार समझाया है कि कस्टमर इस गॉड एंड गॉड इस ग्रेट। आप मुझे बताइए बेटाजी क्या चाहिए आपको?
माया- अंकल आपको डिस्टर्ब करा हो तो सॉरी। मैं तो बस चार्ली के लिए लेंस और बैटरी खरीदने आई थी। पर कुछ लोगों को बात समझ में ही नही आ रही।
अरुण- अरे आप इस बंदर की बातों पर ध्यान न दो बेटाजी ये ऐसा ही है। वैसे ये चार्ली है कौन?
माया- अरे अंकल आप भी। मेरे कैमरा का नाम है चार्ली।
अरुण- ओय होय होय बेटा जी। आपने तो दिल खुश कर दिया। ये लीजिए आपके चार्ली के लिए बैटरी और लेंस ये बंदर दिखा ही देगा।
विक्रांत- पापा! यार कस्टमर्स के सामने तो बंदर मत बुलाओ।
अरुण- अब बंदर को बंदर नही कहूं तो क्या कहूं?
ये सुनकर माया हंसने लगती है और विक्रांत को गुस्सा आ जाता है। अरुण उसे आंखें दिखा कर शांत करा देता है और अजीब बात ये थी की वो हो भी जाता है। ये देखकर माया को थोड़ा डाउट होता है पर वो ज्यादा ध्यान नहीं देती। माया तो सिर्फ दो ही चीजों के बारे में सोच रही थी एक तो की चार्ली के लिए लेंस कौनसा खरीदना है? और दूसरी की वो जो आंखें उसने देखीं थीं क्या वो असली थीं?
विक्रांत माया को साथ में लेजाकर एक कमरे के बाहर खड़ा कर देता है। अंदर जाकर फिर दो तीन अलग अलग लेंस निकाल लाता है।
विक्रांत- ये लो! कौनसा चाहिए?
माया- ओय हीरो! डोंट बी सो रूड। बाहर तो बड़ी भीगी बिल्ली बन गए थे।
विक्रांत- ओए, आई एम नॉट ए भीगी बिल्ली।
माया(हंसकर)- या राइट।
विक्रांत- यार दिक्कत क्या है तुम्हारी? सामान लो और निकलो यहां से।
माया- अरे अरे तुम तो सीरियस हो गए। अच्छा, मुझे तीसरा वाला लेंस देदो, फिर आई विल बी ऑन माय वे।
विक्रांत माया को लेंस देता है। माया काउंटर पर जाती है तो देखती है की अरुण वहां पर नहीं थें। पर वहां उसकी मां की उम्र की एक लेडी थीं। वो उसे देख कर स्माइल कर रही थीं।
लेडी- अरे बेटा गुड चॉइस। यहां डलहौजी में हमारी ही शॉप बहुत सालों से ये समान बेच रही है। एक दम फर्स्ट क्लास क्वालिटी का है सब यहां और कभी भी कुछ विंटेज लेने का मन हो तो वापस जरूर आना।
उतने में विक्रांत अंदर से बाहर आता है और उस लेडी को देखकर उनके पैर छूता है। इस बात से ये पता चलता है कि वो लेडी उससे उम्र में बड़ी थीं और आउट ऑफ रिस्पेक्ट वो उनके पैर छू रहा था।
विक्रांत- अरे मां! आप कब आई?
वो लेडी और कोई नही विक्रांत की मां, रश्मि थी।
रश्मि- अभी अभी। तेरे पापा को किसी अर्जेंट काम से बाहर जाना पड़ा तो कॉल करके बुला लिया। और तू ये बता, नालायक, क्यों परेशान करता रहता है कस्टमर्स को?
विक्रांत- अरे मां यार आप भी स्टार्ट मत हो पापा की तरह। मैंने तो जो कहा ठीक कहा। अब जब साइन पर लिखा है आउट फ़ॉर लंच तो किसी को अंदर आना ही नहीं चाहिए था।
रश्मि- ओ मिस्टर० ओवरस्मार्ट जब मैं आई थी तब भी शॉप के बाहर ओपन का ही साइन था। तूने लगाया ही नही लंच ब्रेक का साइन।
विक्रांत- मां मजाक न करो?
रश्मि ये सुनकर विक्रांत के कान मरोड़ने लगती है और कहती है।
रश्मि- अच्छा बच्चू... अब अपनी मां को बताएगा तू, क्या सही और क्या गलत? चल सॉरी बोल उसे।
ये सब वही खड़ी हुई माया देख रही थी और देख कर हंस रही थी।
रश्मि- सॉरी बोल रहा है या नहीं? या फिर अब उठक-बैठक भी लगवाऊं?
विक्रांत- अरे... आउच आउच... मां छोड़ो ना, बोल रहा हूं सॉरी।
विक्रांत न चाहते हुए भी माया को सॉरी बोलता है। माया भी हंसते हुए उसे माफ कर देती है। फिर खरीदे हुए समान के पैसे देकर और रश्मि को नमस्ते करके वहां से चली जाती है।
माया जा चुकी होती है पर रश्मि गुस्से भरी निगाहों से विक्रांत को देखती है कि जैसे उसने कुछ ऐसा कर दिया हो जो उसे नही करना चाहिए था। विक्रांत वहां चुपचाप खड़ा रहता है।
इधर माया सब समान लेकर घर जा ही रही होती है। इस सब घूमने-फिरने में उसे टाइम का अंदाजा नहीं रहता और कब आठ बज जाते है उसे पता भी नहीं चलता। आसमान में देखती है तो सुंदर सा एक पूरा चांद उसकी ओर रोशनी बिखेर रहा होता है। पूर्णिमा की रात का वो चांद काफ़ी सुंदर लग रहा था।
माया घर जाने के लिए आगे तो बढ़ती है पर उसे कुछ दूर आगे चलकर न तो कोई इंसान दिखता है और न ही उसे अपने घर जाने का रास्ता याद आता है। वो ऑफिशियली रास्ता भटक चुकी होती है। रात धीरे-धीरे गहराती जा रही थी और धीरे-धीरे कोहरा बढ़ रहा था। माया को अपने पापा की कही हुई बात याद आती है और जो उसने वहां शॉप में देखा।
माया अपने आप से ही पूंछती है क्या वो उसका वहम था या वहां सच में कोई था?
आगे रास्ता ढूंढते-ढूंढते जाती तो है पर अलग ही डायरेक्शन में मुड़ जाती है। देखती है की वहां पर बड़े से पेड़ हैं और बाकी जगह के मुकाबले वहां अंधेरा कुछ ज्यादा है। फिर उसे लगता है कि किसी जंगल में आ गई है।
नौ बज गए होते हैं। जंगल से बाहर जाने का रास्ता खोजती तो है पर कुछ फायदा नहीं होता। माया वहीं अपनी साइकिल लेकर खड़ी हो जाती है। अचानक से उसे कहीं से कई सारे भेड़ियों के गुर्राने की आवाज आती है।
इधर माया जंगल से निकलने का रास्ता ढूंढ ही रही होती है। उधर वसुधा परेशान होती है की माया अभी तक क्यों नहीं आई? दुष्यंत भी अपनी मीटिंग से वापिस आ गए थे। डिनर का टाइम भी हो चुका था पर माया का कुछ अता-पता नहीं था।
जंगल में माया को वो आवाज सुनकर ऐसा लगता है की कई सारे भेड़िए उसके पास ही आ रहे हैं। माया एक बड़े से पेड़ के पीछे छिप जाती है। वो ध्यान से सुनती है तो उसे किसी के गुर्राने की आवाज सुनाई देती है।
अंधेरे की वजह से उसे कुछ साफ दिखाई नहीं आता। वो चुपके से उसी पेड़ की ओट से देखने की कोशिश करती है। वो हल्का सा देखती है तो वही बड़ी, चमकती पीली आंखें उसे दिखती हैं। जो की एक नहीं कई सारी होतीं हैं। उनमें दो आंखें सबसे बड़ी, सबसे चमकीली और गहरे लाल रंग की होती हैं।
कुछ देर वो आंखों का झुंड वहां ठहरता है और फिर गुर्राते हुए वो झुंड वहां से चला जाता है।
माया चैन की सांस लेकर बाहर निकलती है। बाहर निकलने पर उसे ऐसा लगता है की कोई बड़ी तेजी से उसके पास से गुजरा। माया अपनी साइकिल और सारा सामान उठाकर तेजी से, पूरी जान लगा कर भागने लगती है। पीछे मुड़कर देखती है तो वही पीली आंखें उसका पीछा कर रही होती हैं।
माया सिर्फ पीछे उन आंखों को ही देख रही होती है और भाग रही होती है। भागते भागते वो किसी से टकरा जाती है। सामने से कोई अपने फोन की फ्लैश लाइट उसके मुंह पर मारता है। माया अच्छे से देखती है तो उसे सामने एक लड़की खड़ी हुई दिखाई देती है। माया पीछे मुड़कर देखती है तो वो पीली आंखें उसे कहीं नहीं दिखती।
लड़की- हे गर्ल, यहां इतनी रात में जंगल में ऐसे कहां भागी जा रही हो? चोट तो नहीं लगी?
माया(घबराते हुए)- नहीं मैं ठीक हूं... पर... पर वो... (हांफते हुए) वो आंखें।
लड़की- अरे शांत हो जाओ पहले और गहरी सांस लो। फिर बताना।
माया दो मिनट गहरी सांस लेती है और शांत होकर फिर कहती है।
माया- अरे यार! वो पीली आंखें पीछा कर रही थीं मेरा। मैं तो बाई गॉड जान बचा कर भाग रही थी अपनी।
लड़की- अरे यार जंगल है, कौनसी पीली आंखें? शायद कोई जानवर होगा। शायद क्या पक्का कोई जानवर ही होगा। आफ्टर ऑल इट इज़ ए फॉरेस्ट।
माया- हां शायद। बाय दी वे आई एम माया। और मुझे लगता है की घर का रास्ता भूल गई हूं।
लड़की- अरे, मेरी तमीज़ कहां है? हेलो, मेरा नाम दीप्ती है। दीप्ती शर्मा। अच्छा, टेल मि, कहां रहती हो तुम?
माया- अच्छे से पता नहीं। कल ही शिफ्ट हुईं हूं मैं यहां।
दीप्ती- सही है यार तुम तो बड़ी डेयरिंग हो। पहले दिन ही जंगल में।
माया- अरे नहीं यार, मॉल रोड से घर जाना था। पता नही यहां कैसे आ गई मैं? ऊपर से घर में भी सब परेशान हो रहे होंगे। कहा था डिनर से पहले घर आ जाऊंगी।
दीप्ती- अच्छा पूरा नाम क्या बताया अपना?
माया- ओह सॉरी, माया, माया सिंह।
दीप्ती- नो वे ड्यूड, व्हाट ए कॉइंसिडेंस। तुम वही तो नहीं हमारी न्यू नेबर जो कल ही शिफ्ट हुए हैं। चलो मैं तुम्हे घर ले चलती हूं।
माया ये सुनकर थोड़ा हिचकिचाती तो है पर फिर दीप्ती के साथ चली जाती है। चलते चलते आखिर घर पहुंच ही जाती है। माया देखती है की वो और दीप्ती नेक्स्ट डोर नेबर्स हैं।
दीप्ती- अच्छा चल बाय, पड़ोसन।
माया- यार रुक ना। साथ चल अंदर। मां-पापा गुस्सा करेंगे, तू चल ना थोड़ी सिचुएशन संभाल लियो।
दीप्ती- माया यार, माना की पड़ोसी हैं पर अंदर जाकर क्या कहूंगी?
माया बिना कुछ सुने दीप्ती को अपने साथ अंदर ले जाती है। वहां घर में सब उसका ही इंतजार कर रहे थे। माया को देख कर सबकी जान में जान तो आती है पर कई सवाल भी होते हैं सबके मन में।
दुष्यंत- बेटा, क्या टाइम है ये घर आने का?
वसुधा- कहां थी? बोला था ना खो जाएगी। खो तो नही गई थी? ये कौन है?
माया- मां हां। खो गई थी। ये मेरी नई दोस्त है दीप्ती। यही घर तक लाई है। चार्ली के बारे में तो किसी ने पूछा ही नही पर चार्ली... अरे चार्ली? ओह नो, मां चार्ली कहां गया?
वसुधा- चार्ली को छोड़, तू ठीक है ना? कैमरा तो नया भी आ जायेगा। थैंक्यू बेटा, इसे यहां ले आई तुम।
दीप्ती- नमस्ते आंटी। अरे आंटी अब एक पड़ोसी ही तो पड़ोसी के काम आएगा न। मैं यही आपके बगल वाले घर में रहती हूं।
वसुधा और दुष्यंत- अच्छा तो आप हैं शर्मा जी की बेटी?
दीप्ती- जी अंकल। जी आंटी। अच्छा अब मैं चलती हूं। मां-पापा इंतज़ार कर रहे होंगे मेरा।
वसुधा- बेटा खाना तो खा कर जाओ।
दीप्ती- नहीं नहीं आंटी, कभी और आना होगा तो खाती हूं। वैसे भी रात काफी हो गई है।
दीप्ती अपने घर चली जाती है। माया तो आ गई थी पर चार्ली को खो दिया था। मन ही मन में सोच रही थी की कब उस जंगल में जायेगी और वो चार्ली को वापस लाएगी।
वसुधा और दुष्यंत सब चीजों से गुस्सा तो थे पर अपनी बेटी को वापस पाने के बाद सब भुला देते हैं। माया को गले लगाते हैं और उसे बताते हैं की कल से ईस्टर्न ग्रूव हाई में माया को क्लासेज करने जाना था। माया भी खुश होती है। उसके बाद खाना खाकर अपने कमरे में चली जाती है।पूरे दिन में जो अजीबोगरीब चीजें हुई उसने थका दिया था माया को। माया ये सोचते सोचते सो जाती है की क्या हो रहा है ये सब?
अगले दिन, यानी सोमवार को माया सुबह जल्दी उठकर तैयार होती है। आफ्टर ऑल आज से ही उसकी क्लासेज स्टार्ट होनी थीं नए कॉलेज में।
माया और अनिका दोनों कॉलेज के लिए तैयार हो रही थीं। वसुधा और आरुष स्कूल के लिए। दुष्यंत की खरीदी हुई ज़मीन अप्रूव हो गई थी तो वो साइट पर काम शुरू करने जाने वाले थे।
माया और फैमिली एक साथ ब्रेकफास्ट करके साथ में ही निकलते हैं। घर की देखभाल के लिए काका आ चुके थे और क्योंकि वो काफी समय से घर के वफादार थे तो उन्हें ही सबकी गैरमौजूदगी में रोज घर को संभालना था। ये काम वो अपनी जवानी से ही निस्वार्थ भाव से कर रहे थे।
अनिका जल्दी आगे चली जाती है। माया पीछे रुक जाती है। वो दीप्ती के आने का ही इंतज़ार कर रही थी। दीप्ती आती है और दोनों साथ में ही कॉलेज के लिए निकलते हैं।
ईस्टर्न ग्रूव हाई डलहौजी का काफी मशहूर कॉलेज था। वो वैली में बना था पर उसका इंफ्रास्ट्रक्चर और ब्यूटी देखने के काबिल थे। हालही में नए डीन, डॉ. प्रमोद वर्मा अप्वाइंट हुए थे। उनके नेतृत्व में कॉलेज ने काफी तर्रकी की। कॉलेज की रैंक भी बढ़ गई थी। कॉलेज में आर्ट्स, साइंस और कॉमर्स के काफी बच्चे थे। इंग्लिश क्लासेज सबके लिए कंपलसरी थीं और स्पोर्ट्स और एक्स्ट्रा कैरिकुलर एक्टिविटीज में भी कॉलेज और उसका स्टाफ काफी ध्यान देता था। ओवरऑल एक वेलबेलेंसेड कैरिकुलम था ईस्टर्न ग्रूव हाई का।
कॉलेज, माया के लोकेलिटी से करीब आधा कि.मी. दूर था। जो की साइकिल से आराम से पहुंचा जा सकता था। माया फर्स्ट टाइम अपने कॉलेज को देख कर मंत्रमुग्ध थी। कॉलेज काफी एकड़ में फैला था और उस में हर प्रकार की सुविधाएं थी। साथ में स्पोर्ट्स के लिए अलग अलग कोर्ट्स थे। कॉलेज के सामने ही एक बड़ा खाली ग्राउंड था जिसमे नर्म घांस थी। स्टूडेंट्स अक्सर वहां आते थे जब वो बंक मारते थे या उनका फ्री पीरियड होता था।
कॉलेज का मुख्य आकर्षण थे उसकी लाइब्रेरी और कैफेटेरिया। कॉलेज में अपनी हॉबीज परस्यू करने के लिए काफी सारे क्लब्स थे जो आए दिन कल्चरल प्रोग्राम्स, फेस्ट और इंटरकॉलेज कंपटीशन ऑर्गेनाइज करते ही रहते थे।
कॉलेज को देख कर दो मिनट माया एक दम स्तब्ध सी खड़ी रह गई। दीप्ती उसे हिला कर बोलती है।
दीप्ती- ओ बहन तू ठीक है ना? क्या हो गया तुझे?
माया- अरे यार, ये अपना ही कॉलेज है? सच बता। एक बार मुझे पिंच कर।
दीप्ती माया को एक चिकोटी काटती है और माया जोर से चिल्लाती है।
माया- अरे यार सपना नहीं है, ये तो हकीकत है।
दीप्ती- अब यहीं खड़े-खड़े खयाली पुलाओ ही पकाती रहेगी की चलेगी भी? चल जल्दी लेट हो जायेंगे क्लास के लिए तेरे फर्स्ट डे पर ही।
दीप्ती उसे खींच कर अंदर ले जाती है। अंदर जाकर सबसे पहले वो रिसेप्शनिस्ट से मिलते हैं। रिसेप्शनिस्ट उन्हे 'राजा रवि वर्मा' ब्लॉक की ओर डायरेक्ट करती है। वहां जाकर वो सबसे पहले नोटिस बोर्ड चेक करती हैं। उन्हे उनका टाइम टेबल मिल जाता है।
टाइम टेबल देखकर उनको पता चलता हैं कि उनकी पहली क्लास इंग्लिश की है। वो आर. आर. वी. ब्लॉक में लेक्चर हॉल ३०१ में घुसती हैं। वो देखती हैं की पहले से ही काफी सारे स्टूडेंट्स वहां आकर बैठे होते हैं। लेक्चर हॉल में करीबन ५० लोगों के बैठने की जगह थी। माया पांचवी रो की तीसरी सीट खाली देखती है तो उसके पास जाकर खड़ी हो जाती है दीप्ती के साथ।
वहां पहले से ही एक दुबली-पतली लड़की बैठी थी। वो देखने में सुंदर थी पर उसके बारे में एक अजीब बात थी। वो बाकी लोगों के मुकाबले कुछ ज्यादा ही पेल थी। उसे देख कर ऐसा लग रहा था की उसके अंदर खून का एक कतरा भी नहीं था। उसने एक मैरून कलर की ड्रेस पहनी थी जो उसके स्किन कलर के बिलकुल विपरीत थी। उसके घुंगराले बाल उसकी ब्यूटी को और बढ़ा रहें थें पर कोई अंजान इंसान उसको एक नजर देखकर जरूर डर जाएगा।
माया- क्या यहां बैठ सकते हैं?
लड़की- हां ठीक है। परफ्यूम अच्छा है तुम्हारा। माइसेल्फ दित्या प्रजापति। क्लास की सबसे छोटी स्टूडेंट, सब यही कहते हैं।
माया- थैंक्स फ़ॉर दी कॉम्प्लीमेंट। मैं माया सिंह और ये मेरी पड़ोसन दीप्ती शर्मा। ओय हेलो कर। नाइस टू मीट यू वैसे।
दीप्ती- हेलो ब्यूटीफुल!
दित्या- चलो जल्दी बैठ जाओ बातें बाद में कर लेना। तुम वैसे भी एक हफ्ता लेट हो। मैं तो दीप्ति से मिल चुकी हूं। सक्सेना सर आते ही होंगे। वो अपने सब्जेक्ट को लेकर काफी पर्टिकुलर हैं।
माया- ओह अच्छा, वैसे सुनो यहां सब फाइन आर्ट्स के ही स्टूडेंट्स हैं क्या?
दित्या- नो ब्रो, ये सब अलग-अलग कोर्सेज में हैं पर सब को फाइन आर्ट्स पसंद है। कुछ लोगों का मेन सब्जेक्ट, कुछ की हॉबी और बाकी उसके क्लब के मेंबर्स हैं। इस क्लास के बाद सब इसी विंग में अपनी-अपनी क्लासेज के लिए चले जायेंगे, उनके टाइम टेबल के अकॉर्डिंग। एस यू कैन सी, हर सुबह ९ से १० इंग्लिश का ही पीरियड होता है।
माया- ओह अच्छा। मेरा और इसका तो मेन सब्जेक्ट फाइन आर्ट्स ही है। तुम किसकी स्टूडेंट हो?
दित्या- मैं भी। फाइन आर्ट्स इस लव।
अचानक से क्लास का सारा शोर भरा माहौल शांत हो जाता है और सक्सेना सर क्लासरूम में आ जाते हैं। सक्सेना सर एक ५० साल के बुजुर्ग थे और बिलकुल एक इंग्लिश मैन की तरह कपड़े पहनते थे। उनके सिर पर एक टोपी और हाथ में छड़ी रहती थी। दूसरे हाथ में इंग्लिश की एक बुक। वो आते ही सबसे पहले सारे न्यूकमर्स को उनका इंट्रोडक्शन देने को कहते हैं। उनका मानना था कि ये एक अच्छा तरीका था नए लोगों को जानने का और अपनी कम्युनिकेशन स्किल्स इंप्रूव करने का।
सक्सेना सर की क्लास और इंग्लिश टीचर्स की तरह सिर्फ लैंग्वेज पर ही ध्यान ही देती थी। पर वो ओवरऑल पर्सनेलिटी को कैसे डेवलप करें उसपर भी ध्यान देती थी। उनकी क्लास का एक घंटा कब खत्म हुआ पता ही नहीं चला। क्लास के बाद माया को पता चला उसके अलावा फाइन आर्ट्स के ८ और स्टूडेंट्स थे।
दो को तो वो पहले से ही जानती थी। पहली दीप्ती, दूसरी दित्या जिससे वो आज ही मिली थी। बाकी के लोग थे-:१. नकुल राय२. श्रद्धा बंसल३. विशाल बंसल४. तुषार मेहता५. तरुण मित्तल६. उत्कर्ष वर्माऔर इन सब के अलावा ४ और स्टूडेंट्स थे जो आज क्लास नहीं आए थे।
इंग्लिश की क्लास के बाद अब फाइन आर्ट्स की क्लास थी। अपने नए क्लासमेट्स से मिलकर माया काफ़ी खुश थी। वो सब उसे अपने दिल्ली वाले दोस्तो की याद दिलाते थे।फाइन आर्ट्स की टीचर मित्तल मैम थी। वो एक ४६ साल की एक महिला थी और कॉलेज में करीब २९ साल से पढ़ा रहीं थीं। मित्तल मैम गोरी थीं और हल्की मोटी भी। वो हमेशा ट्रेडिशनल कपड़े ही पहनती थीं। दिखने में भले ही स्ट्रिक्ट और नेरोमिंडेड लगती थीं पर वो सब टीचर्स में से सबसे प्रोग्रेसिव थीं। वो दोनों, थ्योरी और प्रैक्टिकल क्लासेज लेती थीं फाइन आर्ट्स की।
उनकी कोई स्पेशल क्लास नहीं थी। फाइन आर्ट्स को लेकर बस एक छोटा सा रूम था जहां उनकी आर्ट सप्लाइज और उनकी कुछ पेंटिंग्स रखीं थीं। उनका मानना था कि आर्ट की इंस्पिरेशन तो कहीं से भी आ सकती है। फाइन आर्ट्स का प्रैक्टिकल उस दिन कॉलेज के ओपन ग्राउंड में हुआ जहां मित्तल मैम ने सबको अपने इमोशन को कैनवास पर कैसे उतारना है ये सिखाया। थ्योरी लेक्चर भी सबको एक सर्किल में बिठाकर पेड़ के नीचे दिया और फिर सबसे हंसी-मजाक करके सबसे विदा ली।
फाइन आर्ट्स के पीरियड के बाद अब लंच ब्रेक था। तो माया और उसके सारे दोस्त कैफेटेरिया चले गए। वहां आम दिन के मुकाबले उस दिन ज्यादा शांति थी। ये देखकर दित्या थोड़ा घबरा जाती है और सबसे कहती है।
दित्या- यार, वो दोनों कभी भी आते ही होंगे, सब निकलो यहां से।
श्रद्धा- दित्या तू किसके बारे में बात कर रही है?
उत्कर्ष- यार डोंट टेल मि, की तू उन दोनों की बात कर रही है।
नकुल- अबे क्या लगा रखा है वो दोनों आ रहे हैं ? कौन आ रहा है कोई बताएगा भी?
दित्या- यार मेरे भाई। वही दोनों बदमाश कॉलेज के। चलो यहां से।
ये सुनकर तरुण वहां से भाग जाता है। बाकी लोग भी वहां से जाने वाले ही होते हैं कि अचानक से पता नहीं कही से दो लंबे, लीन लड़के वहां आ जाते हैं। उनको देखकर साफ पता चल रहा था की वो दोनों दित्या के ही भाई थे। दोनों काफी गुडलुकिंग थे और बैड बॉयज वाली ही फील दे रहे थे। उनको देख कर पता चलता था कि दे वर अपटू नो गुड। दोनों ही भाई करीबन एक ही हाइट के थे अराउंड ५ फूट १० इंच। दोनों के बाल एक दम स्ट्रेट और हल्की मस्कुलर बॉडी थी। एक की आंखों का रंग नीला था और दूसरे की आंखों का रंग भूरा। दोनों ने एक दूसरे को कॉम्प्लीमेंट करने वाले ही कपड़े पहने थें। उन्होंने आते ही दित्या का हाथ पकड़ लिया।
दित्या- दर्शित, दक्ष क्या नाटक लगा रखा है ये? छोड़ो मुझे दर्द हो रहा है।
उसमें से नीली आंखों वाला दर्शित और भूरी आंखों वाला दक्ष था।
दर्शित- अरे अरे, क्या हुआ? अपने नए दोस्तों से नहीं मिलवाएगी हमें?
दक्ष- हां भई। हम भी तो क्लासमेट्स ही हैं। आखिर कॉलेज लाइफ साथ ही बितानी है तो जानना तो जरूरी है सबको।
माया- ए, व्हाट इज दिस बिहेवियर? छोड़ो उसका हाथ। हो कौन तुम दोनों लफंगे? क्या हरकतें हैं ये?
दीप्ती- हां बे, छोड़ो उसका हाथ।
उत्कर्ष (धीरे से)- क्या कर रही है माया? भाई हैं दोनों उसके।
माया- फिर तो ये हरकतें करने की हिम्मत कैसे हुई दोनों नमूनों की?
दित्या- तुम लोग बाहर रहो इस सब से मैं संभाल लूंगी। तुम सब जाओ यहां से।
दक्ष- ना... ना... ना... ऐसे कैसे? इंट्रोडक्शन दिए बिना कोई कहीं नही जायेगा।
दर्शित- जाके दिखाए। कैसे जायेंगें मैं देखता हूं?
ये कह कर फिर दोनों हंसने लगे। दक्ष सारे लड़कों का इंट्रो. लेता है उत्कर्ष को छोड़ कर और दर्शित सारी लड़कियों का। एंड में माया और दित्या बचते हैं बस। दक्ष माया की तरफ उंगली करके उससे कहता है।
दक्ष- हां तो, मिस फूलन देवी अब आपकी बारी है। क्या कह रही थी? "कि भाई हो इसके, ये क्या हरकतें हैं?"
दर्शित- तुम होती कौन हो हमें हमारी बहन से बात करने की तमीज सिखाने वाली?
दित्या- भाई क्या कर रहे हो आप दोनों जाने दो उसे?
माया- नहीं दित्या। आज इनको मैं सबक सिखाती हूं कि लड़कियों से कैसे बात करते हैं और अपनी बहन के साथ ये सब नहीं करना होता।
माया अपने पैरों से अपनी हील निकालती है और एक-एक करके दोनों के मुंह पर मारती है। दित्या वहीं खड़ी ये सब घबराते हुए देख रही होती है क्योंकि उसको भी नहीं पता था की अब आगे क्या ही होगा माया के साथ।
दोनों को एक-एक हील मारने के बाद माया वहां से जाने ही वाली होती है कि तभी दक्ष उसको कस कर पकड़ लेता है। उस समय जो माया देखती है वो सुनने में इंपॉसिबल सा लगेगा और यकीन करने में थोड़ा मुश्किल होगा। माया देखती है कि दोनों भाइयों की आंखें जो पहले नीली और भूरी थीं अब रात के अंधेरे की तरह अब एक दम काली हो चुकी हैं। दोनों काफी गुस्से में भी लग रहे थे और दोनों के कैनाइन टीथ काफी उभर आए थे। माया ये सब देख कर डर गई थी। कुछ बुरा होने ही वाला था की तभी वहां एक तीसरा लड़का आ जाता है जो उम्र में वहां मौजूद सबसे बड़ा था। दित्या उस लड़के को देख कर चैन की सांस लेती है।
दित्या- दंश भाई ! अच्छा है आप आ गए। ये देखो ये दोनों क्या कर रहे हैं।
दंश, दक्ष, दर्शित और दित्या का बड़ा भाई था, उनका कसिन। दिखने में किसी मूवी स्टार से कम नहीं था। मस्कुलर बॉडी, पतला हॉट फिगर, रंग में पेल बाकियों की तरह। स्ट्रेट बाल, लंबा कद, फोल्डेड स्लीव्स और ऑल ब्लैक कपड़े। ऊपर से सोने पे सुहागा ऐसी सिचुएशन में भी उसकी काल्मनेस।
दंश- दक्ष, दर्शित क्या चल रहा है ये सब? कर क्या रहे हो तुम दोनों?
दंश की आवाज सुनकर दोनों भाई शांत हो जाते हैं और डर से कांपने लगते हैं।
दक्ष (हकलाते हुए)- वो... वो... भाई बस कुछ नहीं नए क्लासमेट्स का इंट्रो. ले रहे थे बस और कुछ नहीं।
दर्शित (झूठी हंसी हंसता हुआ)- हे... हे...हां भाई बस इंट्रो. ही ले रहे थे सबका। वैसे भी सारा आइडिया दक्ष का था।
दंश- दोनों बिलकुल चुप हो जाओ। अभी डीन सर ने मुझे बुलाया था और तुम दोनों को लास्ट वार्निंग दे रहा हूं। आगे अगर कोई भी कंप्लेंट आई तुम्हारी तो, आज तो मैने बचा लिया है अगली बार यू विल बी आउट ऑफ द कॉलेज। याद रखना ये कल से रेगुलर क्लास, नो बंकिंग, नो रैगिंग, ओनली पढ़ाई पर ही ध्यान देना है। आई बात समझ में? अब निकलो दोनों यहां से और सॉरी बोलो सबको। दित्या तू ठीक है?
दंश से लेक्चर सुनकर दोनों वहां से चले जाते हैं और उनके जाने के बाद दित्या कहती है।
दित्या- हां भाई मैं तो ठीक हूं। माया ने अच्छा सबक सिखाया दोनों छछुंदरों को। आई होप वो ठीक है।
दंश फाइनली माया की तरफ मुड़ता है। उसे देख कर माया मंत्रमुग्ध हो जाती है। वो दंश को देखकर उससे एक स्ट्रेंज सा कनेक्शन फील करती है। दंश माया को देखकर थोड़ा चौक जाता है पर फिर उसे उठा कर उससे पूछता है।
दंश- हे! ठीक हो तुम? मैं अपने भाइयों की तरफ से माफी मांगता हूं। आई होप एवरीथिंग इस ओके? मैं दंश हूं वैसे। कॉलेज में फाइन आर्ट्स में सेकंड ईयर में।
माया कुछ कहती नहीं है। बस दंश की ग्रे आंखों को एक टक देखती रहती है। ये देखकर दित्या दंश से कहती है।
दित्या- भाई आप जाओ। इसे मैं देखती हूं। मां को बताना घर जाके दोनों की हरकतों के बारे में।
दंश वहां से चला जाता है। दित्या वहां माया को संभालती है और उससे पूछती है।
दित्या- ओय तू ठीक है ना? क्या हो गया था तुझे अभी? भाई को ऐसे क्यों देख रही थी?
इससे पहले की माया कुछ जवाब देती, उतने में दीप्ती वहां आ जाती है।
दीप्ती- क्या कर रहे हो दोनों? अब तो फ्री पीरियड है ना? क्या करना है कोई कुछ बताएगा?
माया- सच में फ्री पीरियड है?
दित्या- हां यार, अब बाकी का दिन फ्री ही है।
माया- चलो बढ़िया है अब मैं चार्ली को ढूंढने जा सकती हूं।
दित्या- ये चार्ली कौन है अब?
दीप्ती- इसका सबसे अच्छा दोस्त, इसका कैमरा। ये अपने कैमरा को प्यार से चार्ली बुलाती है।
दित्या- ब्रो, तू भी ना। पर चार्ली गया कहां? और मिलेगा कैसे?
माया- कल रात मैंने उसे कहीं गिरा दिया था। जहां मैं और दीप्ती फर्स्ट टाइम मिले थे। याद कर ना दीप्ती।
दीप्ती- अरे हां ना। हम तो उस जंगल में मिले थे ना। हो सकता है वहीं कहीं गिरा हो।
माया- अरे हो सकता है क्या? वहीं गिरा होगा ना चार्ली।
दीप्ती- हां ना चलो चलते हैं। दित्या तू भी चल ना।
दित्या- हां लेकिन तुम लोग कौनसे जंगल जाने की बात कर रहे हो?
दीप्ती- अरे यार वही मॉल रोड के पास वाला जंगल।
दित्या ये सुनकर घबरा जाती है और माया और दीप्ती से बहाना बना कर चली जाती है।
दीप्ती- अरे इसे क्या हुआ? ये ऐसे दुम दबाकर कहां भाग गई?
माया- अरे कुछ अर्जेंट काम याद आ गया होगा। चल अब तो उसके बिना ही जाना होगा।
माया और दीप्ती मॉल रोड के पास वाले जंगल में जाते हैं और माया का कैमरा ढूंढने लगते हैं। उन्हे वो कहीं नहीं मिलता। और अंदर जाते हैं तो धीरे-धीरे कोहरा बढ़ने लगता है। एक बड़े से पेड़ के पास दोनों को एक लड़की का साया दिखता है। लड़की करीबन उन्ही की उम्र की थी और हाइट में एवरेज थी। रंग हल्का सांवला, बड़ी-बड़ी कजरारी आंखें। होठों पर लाल लिपस्टिक और लाल कलर की ही एक साड़ी लपेटी हुई थी। उसका फिगर काफी अच्छा था।दोनों उसे देखकर घबरा जाते हैं पर फिर भी आगे बढ़ते हैं। पास जाकर सुनते हैं तो ऐसा लगता है की वो लड़की अपने आप से बातें कर रही थी।
माया- अबे यार ये कौन है? देख तो जरा?
दीप्ती और माया देखने की कोशिश करते है पर कुछ दिखता नहीं है क्योंकि लड़की का चेहरा उस बड़े से पेड़ की तरफ था।
लड़की (अपने आप से बातें करते हुए)- याद रखना हमेशा की तुम यहां क्यों आई हो? किसी को भी नहीं पता चलना चाहिए की क्या है तुम्हारा राज़। तुम सिर्फ उनकी बर्बादी के लिए यहां हो।
ये सुनकर दीप्ती कुछ सोचती है और जोर से उसे अपनी ओर खींचती है।
माया (अपने आप से)- अरे, अब ये क्या कर रही है?
दीप्ती- तो मैं ठीक ही थी, ये तू ही है ना अनामिका? अपना ये प्ले के रोल का सपना छोड़ दे और ये कौनसी जगह है ऐसे प्रैक्टिस करने के लिए।
अनामिका- यार तू भी ना, अच्छा खासा अपने डाकीनी के रोल के लिए प्रिपेयर कर रही थी। सब किए कराए पर पानी फेर दिया।
माया- कोई बताएगा हो क्या रहा है?
दीप्ती- ओह्फो। अरे यार ये है वो तीसरी जो आज मिसिंग थी क्लास से। ड्रामा क्वीन अनामिका माथुर। इसे ये डायन, भूत, चुड़ैल के रोल करने में बड़ा मजा आता है। हमारे साथ ही एडमिशन हुआ था इसका भी।
माया- ओ अच्छा। मैं माया तुम्हारी ही क्लास में हूं।
अनामिका- नाइस टू मीट यू। अच्छा ये सब बातें तो होती रहेंगी। तुम लोग बताओ यहां क्या कर रहे हो इस टाइम?
माया- यार चार्ली को ढूंढ रहे हैं। कही मिल नही रहा है।
अनामिका- ये चार्ली कौन है?
माया- ये लोग मुझसे दो दिनों में ७६५ बार पूछ चुके हैं। चार्ली मेरे कैमरा का नाम है।
अनामिका ये बात सुनकर विजिबली कन्फ्यूज्ड थी पर वो कुछ कहती नहीं है। वो आगे कुछ पूछना ठीक नहीं समझती। बस अपने दोनों हाथ आगे बढ़ा कर एक कैमरा दिखाती है और पूछती है।
अनामिका- क्या यही है चार्ली? यहीं पड़ा हुआ मिला मुझे।
माया चार्ली को देख कर खुश हो जाती है और अनामिका के हाथ से कैमरा लेकर उसे ऑन करने की कोशिश करती है। पर चार्ली ऑन ही नहीं होता।
माया- अरे यार! देख ना ये ऑन ही नहीं हो रहा।
दीप्ती- तुझे अभी क्यों ऑन करना है उसे घर जाकर बैटरी चार्ज करके देखियो।
माया- अरे यार बैटरी फुल है, इसमें कुछ रिकॉर्ड भी हुआ है देख ये लाल एल. ई. डी. भी फ्लिकर कर रही है।
अनामिका- हां, अगर बैटरी फुल है तो ये चल क्यों नही रहा?
माया- भगवान जाने यार। पता नहीं अब ठीक कैसे होगा?
दीप्ती- वो विक्रांत है ना। उसी की शॉप पर दे आ।
माया- एक मिनट... एक मिनट... तू उस विक्रांत को कैसे जानती है?
दीप्ती- कैसे जानती है मतलब? क्लास का सबसे पॉपुलर बंदा है और मैं जानूंगी भी नहीं उसे?
अनामिका- ये वही है ना जिसकी एक विंटेज शॉप है?
दीप्ती- हाँ यार वही है।
माया- तो तेरा मतलब है वो भी क्लास में है? वो नकचड़ा?
ये सुनकर दोनों अनामिका और दीप्ती हँसने लगते हैं।
माया- अरे हँस क्या रहे हो बताओ?
दीप्ती (हँसते हुए)- आ हा हा... तुझे क्या हो गया? तू ये बता। तू कहाँ मिल ली उससे?
माया सारी कहानी उन्हें बताती है और परेशान होती है। दीप्ती और माया विक्रांत की शॉप के लिए निकलते हैं। अनामिका प्रैक्टिस का बहाना बना कर वहीं रुक जाती है।
उनके जाने के बाद अनामिका जोरों से हँसने लगती है। उस वक्त उसे देखकर ऐसा लग रहा था की जो वो चाहती थी वोही हो रहा था। अनामिका ऐसी लग रही थी मानो वो कोई और ही थी। जिसे ढंग से कोई नहीं जानता था। वो जो थी वो किसी को दिखाती नही थी।
उधर माया और दीप्ती विक्रांत की शॉप पर पहुंचते हैं। दीप्ती तेज़ी से अंदर जाने ही वाली होती है की पीछे से माया उसे पकड़ लेती है।
माया- ओ हवाहवाई। ज़रा साइन ढंग से पढ़ियो। पिछली बार की तरह आई डोंट वांट एनी ड्रामा।
दीप्ती- हां बाबा... देख ध्यान से 'ओपन' ही लिखा है। वैसे भी विक्रांत क्लासमेट है वो कुछ नहीं कहेगा।
माया- मुझे तो नहीं लगता, वो बंदर कुछ सुनेगा भी।
माया और दीप्ती शॉप के अंदर आते हैं और हर बार की तरह विक्रांत वहीं खड़ा होता है। वो पहले दीप्ती को ग्रीट करता है और माया को देखकर मुंह बना लेता है।
विक्रांत- ओ हेलो (फिर धीमे से बोलता है) लगता है मेरी ज़िंदगी में डिस्टर्बेंस खत्म नहीं होगी।
माया- कुछ कहा क्या तुमने?
विक्रांत- नहीं तो। सुना क्या तुमने कुछ?
माया- ए ज्यादा ओवरस्माट मत बनो मिस्टर० बंदर। चार्ली को ठीक करो।
विक्रांत- ओ मिस. अजीबोगरीब आपका नौकर नही हूं मैं।
दीप्ती- क्या यार ऐसे बच्चों की तरह लड़ रहे हो? बस करो दोनों। विक्रांत ये ठीक करके दे सकते हो तो बताओ वरना हम चले जाते हैं। और बाय द वे, ये भी आज से क्लासमेट है तुम्हारी।
विक्रांत- क्या?! क्या कह दिया? आलतू-जलालतु आई बाला को टाल तू। अपनी कॉलेज लाइफ इस ढक्कन के साथ बितानी पड़ेगी? हे भगवान इतना ज़ुल्म मुझ गरीब पर।
माया- ओय भीगी बिल्ली। ढक्कन किसे बोला?कैमरा ठीक करना है तो बताओ या आता ही नहीं है कैमरा ठीक करना?
विक्रांत- कहा तो तुम्हें ही था पर अब लगता है की तुम सच में ढक्कन ही हो। ऑब्वियसली, इतनी बड़ी कैमरा की शॉप है तो कैमरा भी ठीक करना आता ही होगा।
माया- तो कब तक ठीक हो जायेगा?
विक्रांत- डिपेंड करता है कि इस कैमरा के भी कही कुछ लोगों की तरह पेंच तो ढीले नही हैं।
माया- बहुत हो गया, यू वेट बंदर। आज ही दो नमूनों को मेरी हील ने सबक सिखाया है लगता है अब तुम्हारी बारी है।
विक्रांत- अरे अरे, तुम तो सीरियस हो गई। बताओ तो क्या हुआ है इसमें?
माया- पता नहीं चार्ली की बैटरी तो फुल है पर ये ऑन नहीं हो रहा। मुझसे कल वो जो मॉल रोड के पास वाला जंगल है ना वहीं पर गिर गया था। इसमें कुछ रिकॉर्ड भी हुआ है। पर ये ऑन ही नहीं हो रहा।
विक्रांत- ओह कोई नहीं कल दोपहर तक देता हूं ठीक करके।
माया अपना कैमरा उसे थमा कर दीप्ति के साथ वहां से चली जाती है। माया की बाते सुनकर विक्रांत घबरा जाता है। अपने आप से पूछता है।
विक्रांत (खुद से ही)- मॉल रोड के पास वाला जंगल? ऐसा क्या रिकॉर्ड हो गया इस डब्बे में?
विक्रांत तुरंत उसे ठीक करना स्टार्ट करता है। चार-पाँच घंटे लगातार उसपर काम करने के बाद भी वो चल ही नहीं रहा था। फ्रस्ट्रेट होकर, गुस्से में विक्रांत उसे ज़मीन पर पटक देता है।चार्ली नीचे गिरने के बाद रिस्टार्ट होता है और फिर चलने लग जाता है। लेकिन उसकी वीडियो फाइल रिकवरी में कम से कम २४ घंटे लगते तो विक्रांत उसे अपने कंप्यूटर के रिकवरी सॉफ्टवेयर से कनेक्ट करके घर चला जाता है।
सुबह आता है तो देखता है कि अभी भी उसकी रिकॉर्डिंग रिकवरी में कुछ टाइम है। कुछ दो घंटे बाद सारी वीडियो रिकॉर्डिंग और ऑलरेडी क्लिक्ड पिक्चर्स रिकवर हो जाती हैं। विक्रांत फोटोज और वीडियो को स्क्रॉल करता हुआ परसो रात की रिकॉर्डिंग तक पहुंचता है और वीडियो स्टार्ट करके देखता है। रिकॉर्डिंग देख कर उसके होश उड़ जाते हैं और वो काफी ज़्यादा घबराने लगता है।
विक्रांत (अपने आप से)- ये कोई नहीं देख सकता। नहीं मैं ये रिकॉर्डिंग डिलीट कर दूंगा इससे पहले की इसे कोई देखे।
विक्रांत ये सोच ही रहा होता है की उतने में माया वहा आजाति है।
माया- ओ, आई सी। नाइस वर्क, विक्रांत। आई गेस, तुम उतने भी बुरे नहीं हो। लाओ चार्ली को वापस करो।
विक्रांत (हिचकिचाते हुए)- अरे... वो... सुनो इसमें थोड़ा काम अभी बचा है। तुम थोड़ी देर बाद आकर इसे ले जाना।
विक्रांत की पूरी बॉडी अचानक से पसीने से तर हो जाती है। उसे देखकर ऐसा लग रहा था कि कुछ ऐसा होने वाला था जो नही होना चाहिए।
माया- अरे। फिर से मजाक कर रहे हो क्या तुम? मुझसे ज़्यादा अच्छे से कोई नहीं जानता चार्ली को। चार्ली लुक्स ऑल गुड लाओ वापस करो।
माया विक्रांत के हाथ से चार्ली को ले लेती है। चार्ली को ठीक देखकर माया खुश हो जाति है और विक्रांत को पैसे देकर वहां से चली जाती है।
माया जा चुकी होती है। विक्रांत काफी घबराता है और डरता है कि अगर किसी ने रिकॉर्डिंग देख ली तो क्या होगा?
विक्रांत (खुद से)- नहीं... नहीं... नहीं... ऐसा नहीं हो सकता। वो रिकॉर्डिंग कोई नहीं देख सकता। उसे डिलीट होना ही होगा। अगर ऐसा नहीं हुआ तो बहुत बड़ी प्रॉब्लम हो जायेगी।
ये सब विक्रांत सोच ही रहा होता है कि उतने में वहां पर अरुण आ जाते हैं। विक्रांत उन्हें सारी बातें बताता है जो उसने उस रिकॉर्डिंग में देखा।अरुण गुस्से से दहाड़ सी मारता है।
अरुण- तुझे पता भी है तू क्या कह रहा है? अगर वो वीडियो कैसे भी बाहर आ गई तो कितनी बड़ी मुसीबत आ जायेगी, तुझे पता भी है? अब ये सब तुझे ही ठीक करना है।
विक्रांत- पर कैसे?
अरुण- उसका दोस्त बन और वो वीडियो किसी की भी नजरों में आने से पहले डिलीट कर दे। वरना पूरी फैमिली खतरे में आ जाएगी। किसी भी कीमत पर ये हो जाना चाहिए। पूर्णिमा की रात का राज़ किसिके भी सामने नहीं आना चाहिए। और यदि 'उन्हें' ये बात पता चल गई तो प्रलय को आने से मैं भी नहीं रोक सकता।
आखिर ऐसा क्या रिकॉर्ड हो गया था उस कैमरा में? और कैसा राज़ था पूर्णिमा का जिसके बारे में अरुण बात कर रहे थे? ये सब बाते समय जल्द ही बताने वाला था।
चार्ली को लेकर माया घर आ जाति है। इसमें क्या रिकॉर्ड हुआ था देखना तो चाहती थी पर कॉलेज में आज दोपहर में ही उसकी क्लासेज थीं। माया को फोटोग्राफी क्लब में एप्लीकेशन भी देनी थी। अनिका भी रेडी हो रही थी अपनी अकाउंट्स की क्लास के लिए। माया की तरह अनिका को भी लाइब्रेरी फॉर्म सबमिट करना था। दोनों बहनें और दीप्ती कॉलेज के लिए निकलते हैं।
अनिका (एक्साइटेड मूड में)- फाइनली आज अपना लाइब्रेरी फॉर्म सबमिट कर दूंगी।
माया- ओहो ये फिर स्टार्ट हो गई। बुक्स की दीवानी।
दीप्ती- हांना सच में।
अनिका- लुक, कह कौन रहा है? जिसने अपने कैमरा का नाम रख रखा है।
ये कहकर अनिका मुंह फुला कर आगे बढ़ जाती है। दीप्ती अजीब सा मुंह बनाती है। उसे अनिका का ये बिहेवियर कुछ अजीब सा लगता है।
दीप्ती- अरे इसे क्या हो गया? ये हमेशा ऐसी सी ही क्यों रहती है?
माया- पता नहीं यार। हमेशा से ऐसी नहीं थी ये। कुछ ३-४ साल पहले पता नहीं क्या हुआ इसे? अकेले में, अपने-अपने में ही रहने लगी। सबसे बात करना बंद कर दिया था। मां-पापा ने भी जानने की काफी कोशिश करी के इसे हुआ क्या है? पर अंत में उन्होंने हार मान ली और इसका ये सब बिहेवियर एक्सेप्ट कर लिया। तबसे अपनी बुक्स के साथ ही रहती है और काफी एंटी-सोशल हो गई है।
दीप्ती- अच्छा... चल कोई नहीं। चलते है अब २ बजने वाले हैं। आज लेट नहीं होना फिर से।
दीप्ती और माया अपनी साइकिल की स्पीड बढ़ा लेते हैं और सीधे अपने कॉलेज के सामने ही आकर रुकते हैं। माया और दीप्ती साइकिल स्टैंड में अपनी-अपनी साइकिल्स लगा देते हैं और क्लास में चले जाते हैं। क्लास में आकर देखते हैं तो ऑलरेडी सारे बच्चे आकर बैठ गए होते हैं। माया चारों तरफ देखती है पर किसी भी रो में एक साथ दो सीट्स नही दिखती हैं। माया दित्या को ढूंढती है तो देखती है की वो चौथी रो की तीसरी सीट पर एक लड़के के साथ बैठी है।
माया झट से उस सीट पर जाकर बैठ जाती है और बगल वाली रो की जस्ट अपने बगल वाली सीट पर दीप्ती को बैठा देती है। माया देखती है जो लड़का दित्या के साथ बैठा था वो उत्कर्ष था।
दीप्ती उसको देखकर ‘हैलो’ कहती है और ब्लश करने लगती है। माया को ये देखकर थोड़ा अजीब फील होता है पर वो कुछ कहती नहीं इस बारे में। दित्या, माया, उत्कर्ष एक दूसरे को ग्रीट करते हैं। उतने में सक्सेना सर क्लास में आ जाते हैं। आते के साथ ही वो लेक्चर स्टार्ट कर देते हैं। लेक्चर सुनते वक्त माया देखती है की विक्रांत जो की पांचवी रो में बैठा, वो उसी को देख रहा था। जब वो दूसरी रो में देखती है तो देखती है की अनामिका विक्रांत को ही देख रही थी और लास्ट रो में बैठें हुए दर्शित और दक्ष अनामिका को देख रहें थें। ये देख कर माया सोच में पड़ जाती है।
माया (मन ही मन में)- ये क्या ही कर रहें हैं चारों? भगवान कितने क्रीपी क्लासमेट्स हैं मेरें।बाकी सब तो ठीक है पर ये बंदर मुझे ऐसे क्यों देख रहा है?
पूरे लेक्चर यही सिलसिला चलता है। माया भी पूरे पीरियड कोशिश कर रही थी की इन सब चीजों पर ध्यान ना दे लेकिन उसकी कोशिश नाकाम हो रही थी। क्लास में तो ये सब चल ही रहा था जिससे माया परेशान हो रही थी की बगल में दीप्ती भी शुरू हो गई। वो भी बगल वाली सीट से माया के साथ बैठे उत्कर्ष को देखे जा रही थी। माया इंतज़ार ही कर रही थी के कब ये लेक्चर खतम हो और वो निकले वहां से बाहर।
फाइनली एक घंटे बाद क्लास खत्म हुई। माया उठकर जाने ही वाली थी के तभी वहां डीन, डा० प्रमोद वर्मा आ जाते हैं। डीन को देखकर उत्कर्ष अचानक से बोल पड़ता है।
उत्कर्ष- अरे! पापा!
ये बात माया और सारे फाइन आर्ट्स के क्लासमेट्स सुन लेते हैं। सब वो बात सुनकर उत्कर्ष को घूरने लगते हैं।
माया- अबे! कैसा इंसान है तू? बताया क्यों नहीं डीन सर पापा है तेरे?
उत्कर्ष- अरे यार इसी रिएक्शन के डर से नहीं बताया। अब तू मत कहियो किसी से कुछ।
डीन सर सबको शांत करतें हैं और एक अनाउंसमेंट करतें हैं।
डीन- अरे बच्चों बातें बाद में। आप सभी ध्यान से सुनिए। मुझे गर्व हो रहा है अनाउंस करते हुए की हमारा कॉलेज करीब १० साल बाद हमारे कॉलेज का बरसों पुराना प्ले, 'रक्तसंगर' फिर से करने वाला है। ये प्ले हमारे कॉलेज के थिएटर आर्टिस्ट्स प्रेजेंट करेंगे। इसका शो हमारे ही कॉलेज में दो हफ्ते बाद होने वाले फेस्ट में होगा। जी हां, सही सुना आपने हमारा कॉलेज फिर से अपना सालों से चलता फेस्ट 'अनुभूति' ऑर्गेनाइज करने वाला है। ये एक तीन दिन का इवेंट होगा जिसमें कई सारी एक्टिविटीज होंगी। आई वांट यू ऑल टू एनरोल एंड मेक इट ए सक्सेस। बाकी की डिटेल्स आपको टीचर्स से और कॉलेज के मेन नोटिस बोर्ड पर मिल जायेंगी।
डीन ये अनाउंसमेंट करके वहां से चलें जातें हैं। सब ये सुनकर काफी एक्साइटेड होतें हैं। लेकिन अभी फाइन आर्ट्स की क्लास बची थी। पहली बार मित्तल मैम क्लास में ही आ जाति हैं। उनके साथ दो मेल टीचर्स भी अंदर आतें हैं।
मित्तल मैम- बच्चों जैसा के आप सभी को पता है की दो हफ्तों बाद 'अनुभूति' फेस्ट होने वाला है और कई सालों बाद हम फिर से 'रक्तसंगर' प्ले करने वाले हैं तो डीन सर ने स्पेशली फाइन आर्ट्स के टीचर और उनके स्टूडेंट्स से हेल्प मांगी है। आपको चार-चार के ग्रुप में डिवाइड होकर प्ले के लिए बैकड्रॉप बनानें हैं। ग्रुप मैंने सोच लिए हैं। राणा सर और विजय सर के अनाउंसमेंट के बाद मैं सभी के ग्रुप्स बता दूंगी।
मित्तल मैम के अनाउंसमेंट के बाद राणा सर जो की फोटोग्राफी सिखाते थे कॉलेज में और विजय सर जो की स्पोर्ट्स के टीचर थे अपनी अपनी अनाउंसमेंट करते हैं।
राणा सर बताते हैं की कॉलेज में इस बार एक फोटो एग्जिबिशन भी होगा और इंटरेस्टेड लोगों को एनरोल करने को कहते हैं। विजय सर भी सारे स्पोर्ट्स इवेंट्स के बारें में बताते हैं। अपनी अपनी अनाउंसमेंट करके वो दोनों वहां से चले जातें हैं।
मित्तल मैम सब ग्रुप्स अनाउंस करती हैं। अपने ग्रुप से दीप्ती तो काफी खुश होती है पर माया उसी ग्रुप में होकर भी परेशान होती है। माया के ग्रुप में वो, उत्कर्ष, दीप्ती और विक्रांत होते हैं।बाकी दूसरे ग्रुप में दित्या, दक्ष, दर्शित और अनामिका होते हैं। तीसरे ग्रुप में श्रद्धा, विशाल, तुषार, नकुल और तरुण होते हैं।
सब अनाउंसमेंट करके मित्तल मैम भी क्लास को जल्दी छोड़ कर अपना कुछ काम करने चली जाती हैं। माया और उसके सभी क्लासमेट वहां पर एक सर्किल में खड़े हो जातें हैं।
माया- पेंटिंग तो कर लेंगे मगर कोई बताएगा की ये प्ले है किस बारें में?
दीप्ती- पता तो मुझे भी नहीं है।
माया (तरुण की तरफ उंगली करके)- ओय डॉर्क, तुझे पता है क्या कुछ?
दित्या- दोस्तों नो वरीज। चाचू ने करा था सालों पहले एक रोल उसमें। तो मुझे थोड़ा पता है। 'रक्तसंगर' एक अंजान लेखक ने लिखा था। जिसमे उसने पिशाचों, वृकों और डाकिनियों के बारें में बताया है।
विशाल- यू मीन वैंपायर, वेयर वुल्फ एंड विचेस?
उत्कर्ष- हां अंग्रेज़ की औलाद वही।
नकुल- ये कैसा सा ही प्ले है जरा कुछ बता इसके बारें में।
दित्या- ये ब्रिटिश एरा में सेट है जब लॉर्ड डलहौजी इस एरिया को गवर्न कर रहे थे। प्ले के मुताबिक उस समय एक साथ यहां तीन मिस्टीरियस चीजें हुईं थीं।
विक्रांत (थोड़ा सस्पीशियस होते हुए)- कौनसी तीन चीजें?
दित्या- लोगों की अचानक से मौत होने लगती है। उनकी डेडबॉडीज अजीब सी हालत में मिलती हैं। उनके शरीर से किसीने खून गायब कर दिया होता है। हर डेडबॉडी के गर्दन, हाथों और पैरों पर अजीब से बाइट मार्क्स होते हैं। दूसरी जगह जहां अभी वो मॉल रोड के पास वाला जंगल है, उस जगह पर अचानक से, कहीं से एक भेड़ियों का नया झुंड आ गया होता है। प्ले के अकॉर्डिंग लोगों में अफवाह फैल जाती है की वो आम भेड़िए नहीं थे। वो इंसानी रूप भी ले सकते थे। लोग कहते थे की वो इंसान का रूप लेकर सबके बीच में रहते हैं। तीसरी की कही से एक अनजान बंजारों का बसेरा यहां आया था। लोगों को पूरा यकीन था की वो और कोई नहीं जादू जानने वाले डाक और डाकिनी थें।
तुषार- यार स्टोरीलाइन तो बढ़िया है पर होता क्या क्या है?
दक्ष (मज़ाक करते हुए)- कुछ नहीं जो सबका खून पी रहा होता है वो मार देता है सबको।
ये सुनकर दोनों दक्ष और दर्शित जोर से हँसने लग जाते हैं।
श्रद्धा- चुप हो जाओ तुम दोनों। दित्या तू कंटीन्यू कर।
दित्या- पता नहीं यार, ज्यादा तो मुझे भी नहीं पता। इतना पता है की एक हमारे ही उम्र की लड़की इन सब चीजों का सच जानने का ठान लेती है। खोजते हुए उसे एक पिशाच से और फिर एक वृक से प्यार हो जाता है। पर एंड में एक डाकिनि आकर दोनों को मार देती है। वो लड़की दोनों की यादों में ही अपनी पूरी जिंदगी ऐसे ही निकल देती है।
विशाल- अबे ये क्या ही एंडिंग थी। इससे खराब एंडिंग नहीं सुनी मैंने। आगे भी तो होना चाहिए था कुछ।
दक्ष- हां यार सच में।
दर्शित- हां, आई एग्री।
माया- तो मतलब डलहौजी की इंपोर्टेंट जगहों की पेंटिंग बनानी है। ये तो काफी आसान होगा। जा तरुण जाके अपनी मम्मी से साइट्स की लिस्ट ले आ फिर अपनी-अपनी साइट्स सिलेक्ट करके पेंटिंग करना स्टार्ट करते है।
माया ने ऐसा इसलिए कहा था क्योंकि तरुण मित्तल मैम का ही बेटा था।
ये सब डिसाइड करके माया फोटोग्राफी क्लब में एप्लीकेशन और एग्जिबिशन के लिए अपना नाम देने चली गई थी। उसका पीछा करते हुए विक्रांत भी आ जाता है। माया ये नोटिस कर लेती है की विक्रांत उसका पीछा कर रहा था। माया आगे जाकर छिप जाती है। विक्रांत ये देखकर उसे ढूंढने लगता है। माया वही सदियों पुरानी ट्रिक आजमाती है और पीछे से आकर विक्रांत को डरा देती है।
विक्रांत- अरे यार क्या कर रही हो? ये ऐसे पीछे से आकर यूं भूतों की तरह डराना जरूरी था?
माया- ओय बंदर मेरा पीछा क्यों कर रहे हो? और क्लास में मुझे घूंर क्यों रहे थे?
विक्रांत दो मिनट कुछ सोचकर जवाब देता है।
विक्रांत- मैं कहां घूंर रहा था। तुम्हारा पीछा भी नहीं कर रहा था। फोटोग्राफी क्लब ही जा रहा था एग्जिबिशन के लिए अपना नाम देना था।
माया- झूठ मत बोलो। मैं सब जानती हूं। क्या खिचड़ी पक रही है तुम्हारे दिमाग में?
विक्रांत (हिचकिचाते हुए)- वो... वो...
माया- ये वो... वो... क्या लगा रखा है?
विक्रांत- वो मैंने, तुम्हारे शॉप से जाने के बाद आज, मां की बात के बारे में ध्यान से सोचा। तो मुझे ये एहसास हुआ कि मेरी गलती थी। उस दिन मुझे तुम्हारे साथ वैसा बर्ताव नहीं करना चाहिए था। तो, आई एम सॉरी।
माया (मन में सोचते हुए)- आज सूरज कहीं पश्चिम से तो नहीं उग गया? इसे हो क्या गया अचानक से?
विक्रांत- बताओ? क्या मुझे तुम अपना दोस्त बनाओगी।
माया- ओ हैलो, ऐसी ही किसी भी ऐरे-गैरे को मैं अपना दोस्त नहीं बनाती। अगर फ्रेंड बनना है तो मेरा ट्रस्ट जीतना होगा तुम्हे।
माया ये कहकर फोटोग्राफी क्लब में ज्वाइन करने के लिए एप्लीकेशन और अपना नाम एग्जिबिशन के लिए दे आती है।
विक्रांत (मन में)- यार ये कौनसे खेत की मूली है? अब तो मैंने सॉरी भी बोल दिया। इन लड़कियों का न कुछ समझ नहीं आता।
विक्रांत भी अपना नाम एग्जिबिशन के लिए दे आता है। एग्जिबिशन का थीम ‘प्राकृतिक सुंदरता और डलहौजी की संस्कृति' होता है।
दोनों ही क्लासरूम में वापस आ जाते हैं। प्ले के लिए बैकड्रॉप बनाने का काम शुरू करने का टाइम हो चुका था। माया के ग्रुप को चंबा वैली का बैकड्रॉप बनाना था। अनामिका के ग्रुप को काली अंधेरी रोड्स का बैकड्रॉप और नकुल की टीम को डलहौजी के फेमस गोल्फ कोर्स वाला बैकड्रॉप बनाना था।
सब अपना काम शुरू करते हैं। पहली बार माया देखती है की वहां मौजूद सब लोग एक से बढ़कर एक कलाकार थे। माया सभी के काम से काफी इंप्रेस्ड थी। विक्रांत की पेंटिंग स्किल्स को देखकर वो शॉक में थी। वो बस उसे ही देख रही थी पेंटिंग करते हुए।
माया (मन में)– वाह! मुझे नहीं पता था की नक्चड़ा इतनी अच्छी पेंटिंग कर लेता है।
विक्रांत काम में इतना खो जाता है की उसे आस-पास का कुछ पता ही नहीं रहता। अचानक से उसे एक अजीब सी बू आने लगती है। उसको वो जानी पहचानी लगती है। मगर वो उसपर ध्यान नहीं देता और काम कंटिन्यू करता है।
पूरी शाम वो लोग काम करते हैं लेकिन बैकड्रॉप काफी बड़े बनने थे तो उन्हें बनाने में और भी टाइम लगने वाला था। श्रद्धा काम करते करते थक जाती है और वो अपने भाई विशाल से कहती है।
श्रद्धा- ओय विशाल, कितना काम करेगा? सुन ना?
विशाल- क्या हुआ? कितना सारा काम करना है और तुझे अभी गप्पे लड़ाने हैं?
श्रद्धा- यार बोर हो रहा है। चल ना थोड़ी मस्ती करते हैं।
श्रद्धा और विशाल सबके हाथों से पेंट ब्रशेज़ ले लेते हैं और उन्हें पेंटिंग्स के पास से दूर ले जाते हैं।
माया- क्या कर रहे हो तुम दोनों?
विशाल- यार, नाउ डोंट बी ए पार्टी पूपर माया।
श्रद्धा- हां यार कितनी देर से काम कर रहे हैं। चलो थोड़ी मस्ती करते हैं।
दित्या- क्या मस्ती करनी है तुझे?
श्रद्धा- चलो ‘ट्रुथ और डेयर’ खेलते हैं।
उत्कर्ष- हां पर घुमाने के लिए तो कुछ है ही नहीं। खेलेंगे कैसे?
दक्ष (हाथ में एक बीयर की बॉटल लेकर)- अरे तो ये क्या है?
दित्या - भाई, और किसी में आगे रहो न रहो इन सब कामों में आपसे आगे कोई नहीं है।
दक्ष, दित्या को एक स्माइल देता है और फिर सब एक सर्किल में बैठ जाते हैं। अनामिका अभी भी काम कर रही थी। माया उसे आवाज देकर बुला लेती है। अनामिका माया के लेफ्ट में आकर बैठ जाती है।
माया- तो दोस्तों, सबको गेम आता है ना? जिसे नहीं आता वो बता दो अभी। कैसे खेलते है अभी बता देंगे।
अनामिका- नहीं, मुझे नहीं आता।
दीप्ती- क्या यार? अनामिका तू कौनसी सदी की है?
अनामिका (एक दम सीरियस टोन में)- उन्नीसवीं सदी की।
सब ये सुनकर हंसने लग जातें हैं।
श्रद्धा- अरे यार चुप। तो अनामिका गेम का नाम है, ‘ट्रुथ और डेयर’। ये बॉटल है इसे घुमाएंगे और जिस पर भी इसकी ढक्कन वाली साइड आकर रुकेगी, उसे सिलेक्ट करना होगा ट्रुथ या डेयर। अगर ‘ट्रुथ’ लिया तो अपने बारे में एक सच बताना पड़ेगा जो किसी को नहीं पता और अगर ‘डेयर’ लिया तो जो डेयर मिलेगा वो करना पड़ेगा। कोई बैक आउट नहीं कर सकता। चलो शुरू करते हैं।
दक्ष बॉटल घुमाता है और बॉटल अनामिका पर रुकती है। अचानक से सबके देखते ही देखते बॉटल अपने आप पता नहीं कैसे अनामिका के राइट बैठी माया पर मुड़ जाती है।
दर्शित- अरे ये क्या था? ये कैसी बॉटल है? मुझे तो लगा था की अनामिका पर ही रुक गई थी?
उत्कर्ष- अब जो भी है। तो माया ट्रुथ या डेयर?
माया (थोड़ा सोचकर)- डेयर।
नकुल- तो फंस ही गई चिड़िया जाल में क्या डेयर दें इसे?
तुषार- यार जल्दी करो मुझे तो नींद आराही है।
तरुण- हां स्नोर्लेक्स सोजा तू। हर समय बस सोता ही रहता है। गेम में भी ध्यान दे ले थोड़ा।
दर्शित- हां यही सही रहेगा। माया को कम से कम दो घंटे बिताने है मॉल रोड के पास वाले जंगल में। वो भी अकेले।
अनामिका ये सुनकर मन ही मन खुश होती है।
दक्ष- अबे पागल है क्या?
दित्या- दर्शित यार कुछ सोच समझ के तो बोला कर। माया, कोई जरूरत नहीं है ये करने की। कोई और डेयर दो।
दर्शित- रूल्स तो पहले से ही क्लियर थे। नो बैकिंग आउट। अब बाकी माया की मर्जी। उसे ही डिसाइड करना है।
माया- यार, ज्यादा ओवर रिएक्ट मत करो। मुझसे तो पूछो कोई की मुझे करना है या नहीं। वैसे मैं रेडी हूं। वहां पर ऑलरेडी दो बार जा ही चुकी हूं।
विक्रांत- नो माया। वैसे भी अंधेरा हो चुका है। इस समय वहां जाना इस नॉट सेफ। वहां पता नहीं कौनसे जंगली जानवर हों या और कुछ उनसे भी खतरनाक?
दित्या- हां, आई एग्री कंप्लीटली।
माया- यार, कोई नही मैं करूंगी ये डेयर।
माया को सब रोकते हैं पर माया किसी की बात माने बिना जंगल के लिए निकल जाती है। कुछ देर बाद माया उस जंगल में पहुंच जाती है। उसके जाने के बाद वो लोग गेम कंटिन्यू करते हैं।
उधर माया जंगल को आराम से देखती है। जंगल हमेशा की तरह वैसे ही सुनसान था। श्याम का अंधेरा उस वीराने को और भी डरावना बना रहा था। जंगल में हमेशा की तरह रात की चांदनी वहां के पेड़ों के घने पत्तों के बीच से छन कर आ रही थी। इस वजह से जंगल के कुछ हिस्सों में रोशनी हो गई थी। माया बहादुर बन कर जंगल के बीचोंबीच जाती है और वहीं जाकर बैठ जाती है।
माया (अपने आप से)- मैं नहीं डरती। मैं तो एक ब्रेव गर्ल हूं ना। मैं यहां दो घंटे क्या, दो दिन बिता दूं ऐसे ही। वो दर्शित पता नहीं क्या समझता है अपने आप को?
माया को वहां बैठे हुए लगभग आधा घंटा हो चुका था और वहां बैठे हुए बोर हो गई थी। वो ऊपर देखती है, रात के आसमान में तारें काफी साफ़ दिख रहे थे। वो बोरियत को काटने के लिए तारें गिनना शुरू करदेती है। कुछ देर बाद माया उससे भी बोर हो जाति है।
माया (खुद से ही)- यार ये तारें कितने सुंदर लग रहें हैं। काश की चार्ली यहां होता तो मैं इनकी फोटोज खींच लेती।
माया एक घंटा बिता चुकी थी वहीं बैठे-बैठे। अब टाइम काटना काफी मुश्किल हो रहा था उसके लिए। वो वहीं बैठ कर कुछ सोच ही रही होती है के तभी उसको लगता है की एक पेड़ के पीछे से उसे कोई देख रहा है। वो आवाज लगाती है पर कोई जवाब नहीं देता।
माया उठकर देखती है तो पेड़ के पीछे कोई नहीं खड़ा होता। वो सोचती है की उसे वहम हुआ होगा। माया पीछे मुड़ती है तो चौक जाती है। उसके सामने एक पतला, लंबा, गोरा इंसान खड़ा होता है। माया के देखने के साथ ही वो इंसान वहां से भागने लगता है। माया भी उसके पीछे भागती है, उससे पूछने के लिए की वो था कौन? और वहां क्या कर रहा था? वो इंसान काफी तेज़ भाग रहा था इतनी तेज़ के माया काफी पीछे रह गई थी। माया को लग रहा था की ऐसे इतनी तेज़ कोई इंसान कैसे भाग सकता है? माया भागते हुए थक जाति है तो रुककर हाँफने लग जाति है।
माया डर जाति है और जंगल में रोशनी वाली जगहें ढूंढने लगती है। वो सर्च ही कर रही होती है की वो इंसान उसका पीछा करने लग जाता है। माया एक पेड़ के पीछे छिप जाती है और पेड़ की ओट से उस इंसान को देखने की कोशिश करती है। जब उसे वहां कुछ नहीं दिखता तो वो बाहर आ जाति है। बाहर आते ही वो इंसान माया के सामने आ जाता है। वो उसको बिलकुल अपने सामने देखकर घबरा जाती है और धीरे से पीछे जाने लग जाती है। जिससे वो इंसान कही उसपर हमला न करदे।
माया धीरे-धीरे अपने कदम पीछे बढ़ा रही थी और वो इंसान उसी की तरफ आगे कदम बढ़ा रहा था। उस इंसान ने एक लंबा काला चोगा पहन रखा था तो अंधेरे में उसे पहचाना मुश्किल था। माया कुछ देर बाद रुक जाती है। ऐसा वो इसलिए करती है जिससे वो इंसान रोशनी में आ जाए और ऐसा ही होता भी है। माया को रोशनी में होने के बाद भी उसका चेहरा नहीं दिखता। माया को केवल दो चीजें ही दिखती हैं। पहली उस इंसान की आंखें जो की रात के अंधेरे की तरह बिलकुल काली होती हैं। दूसरा उसके कैनाइन टीथ जो की काफी बड़े थे।
उस इंसान को देखकर ऐसा लग रहा था की वो कोई नॉर्मल इंसान नहीं था और वो वहां माया को नुकसान पहुंचाने आया था। वो इंसान माया पर अटैक करने ही वाला होता है के तभी वहां कहीं से एक भेड़िया गुर्राते हुए आ जाता है। उसे देखकर वो इंसान घबरा जाता है। अचानक से उस इंसान के पास कोहरा आना शुरू होता है। कुछ देर बाद वो कोहरा इतना बढ़ जाता है की माया को वो इंसान दिखना बंद हो जाता है। जब वो कोहरा हटता है तो वो इंसान वहां से जा चुका होता है।
माया कुछ पल के लिए चैन की सांस लेती है पर वो भेड़िया अभी भी वहीं था। वो भेड़िया माया को अपने दांत दिखाकर उसकी तरफ धीरे-धीरे बढ़ने लगता है। उसे अपनी तरफ आता देख माया को लगता है की अब वो पक्का मरने वाली है।
माया अपनी जान बचाकर भागने लगती है। वो भेड़िया भी उसके पीछे भागने लगता है। इधर माया अपनी जान बचाने के लिए भाग रही थी। उधर कॉलेज में सब सबको टेंशन होती है क्योंकि उसे गए हुए ऑलमोस्ट ढाई घंटा हो चुका था पर माया वापस नही आई थी।
दीप्ती- यार कहां रह गई ये? कुछ हो तो नहीं गया उसे?
दित्या- मैं तो पहले ही कह रही थी, उसको वहां नहीं जाना चाहिए।
दक्ष- पहली बार मैं इसकी बात से एग्री करता हूं।
नकुल- यार, अब चलोगे उसको लेने के नही?
दर्शित- कोई कही नहीं जायेगा। मैं, दक्ष और दित्या तो बिलकुल भी नहीं।
उत्कर्ष- क्यों बे? लड़की को वहां अकेला भेज दिया। अब खुद डर लग रहा है तुझे?
तुषार- यार तुम लोग जाओ। मैं और तरुण रुकते है यहां पर अगर माया वापिस आए तो हम बता देंगे तुम लोगो को।
तरुण- हां। ये आइडिया अच्छा है।
विक्रांत- किसी को आना है तो आओ मैं तो जा रहां हूं उस जंगल में।
विशाल, नकुल, उत्कर्ष, दीप्ती और श्रद्धा जाने ही वाले होते हैं विक्रांत के साथ कि श्रद्धा देखती है की अनामिका वहां नहीं थी। श्रद्धा एक बार फिर चारों तरफ नज़र घुमाती है और कहती है।
श्रद्धा- अब ये अनामिका कहां गई? किसी ने उसको कहीं जाते हुए देखा?
सब ना में अपना सिर हिलाते हैं।
नकुल- अबे ये हो क्या रहा है?
विक्रांत- यार, तुम यहीं रुको और अनामिका को ढूंढो। मैं जा रहा हूं माया के पास।
विक्रांत अकेला ही माया के पास चला जाता है और कॉलेज में सब अनामिका को ढूंढने लगते हैं। माया जंगल में ही थी और अपनी जान बचाकर अभी भी भाग रही थी। भागते हुए माया एक खाई के पास आकर रुक जाती है।
वो भेड़िया भी माया का पीछा करते हुए वहां तक आ जाता है और गुर्राते हुए माया के इर्द-गिर्द घूमने लगता है। माया बहुत डर जाति है और भगवान से बस ये प्रार्थना करती है की किसी भी तरह वो भेड़िया वहां से चला जाए। विक्रांत उस जंगल में पहुंच जाता है। वो माया को आवाज लगाता है। एक दम से माया के चीखने की आवाज आती है।
विक्रांत जहां से आवाज आई थी वहां पर पहुंचकर देखता है की एक काला भेड़िया माया के चारों तरफ चक्कर काट रहा था। विक्रांत आकर माया के सामने खड़ा हो जाता है। वो भेड़िया विक्रांत को देखकर गुर्राने लगता है। विक्रांत उस भेड़िए को गुस्से से घूंर कर देखने लगता है।
जब उस भेड़िए की आंखें विक्रांत की आंखों पर टिक जाती है, वो भेड़िया कूँ... कूँ... करके रोते हुए वहां से दुम दबाकर भाग जाता है। माया ये देखकर हैरान हो जाति है पर खुश होती है की विक्रांत सही वक्त पर आ गया। माया उसे ज़ोर से गले लगा लेती है और फिर बेहोश हो जाति है। विक्रांत ये देखकर परेशान हो जाता है। वो माया को साथ लेकर कॉलेज वापस आ जाता है।
वहां अभी भी सब अनामिका को ढूंढ रहे थे। माया को उस हालत में देख कर सब चौंक जातें हैं।
दीप्ती- अरे इसे क्या हो गया?
उत्कर्ष- भाई ये ज़िंदा तो है ना?
दित्या- बोला था मैंने वो जगह सेफ नहीं है।
विक्रांत- सब बकवास बंद करो। कोई पानी देगा मुझे?
तुषार वहां पर रखी अपनी पानी की बॉटल उठाता है और खोलकर पूरी बॉटल माया की मुंह पर उड़ेल देता है। माया पर पानी पड़ते ही माया छटपटा कर उठती है।
माया- आह... हाह... कहां हूं मैं?
फिर विक्रांत को फिर से गले लगा लेती।
माया- थैंक यू मुझे बचाने के लिए विक्रांत।
दीप्ती- अरे ये पक्का माया ही है ना? इसकी तबियत तो ठीक है?
नकुल (अजीब सा मुंह बनाते हुए)- हां यार। इनका तो छत्तीस का आकड़ा था ना ये कब हो गया?
माया- गायज शट अप। माना मैं और विक्रांत दोस्त नहीं थे बट ही सेव्ड माय लाइफ। अब वो मेरा पक्का वाला दोस्त है।
श्रद्धा- पर वहां हुआ क्या तेरे साथ?
माया- पता नहीं यार पहले एक घंटे तो सब ठीक था। फिर पता नहीं कहां से वो अजीब सा इंसान आ गया।
तरुण- अजीब सा इंसान?
माया- हां यार। मैं भागी उसके पीछे तो वो भी भाग गया पर वो पता नहीं कितनी स्पीड से भाग रहा था।
उत्कर्ष- तूने चेहरा देखा उसका?
माया- नहीं यार। अंधेरा बहुत था। एक बार ही रोशनी में आया वो। बस मैं दो ही चीजें देख पाई।
दित्या- कौनसी दो चीजें?
माया- एक उसकी अंधेरे से भी काली आंखें और दूसरे उसके लंबे लंबे कैनाइंस।
दित्या, दक्ष, दर्शित और विक्रांत ये सुनकर थोड़ा हिचक जातें हैं। नकुल मज़ाक में कहता है।
नकुल- हो सकता है वो कहानी वाला पिशाच वापिस आ गया हो।
उत्कर्ष और विशाल ये सुनकर थोड़ा डर जातें हैं। दीप्ती ये देखकर हँसने लगती है। उत्कर्ष दीप्ती को हँसता देख कर मुंह बना लेता है।
विक्रांत- अच्छा चलो यार सब घर, रात काफी हो गई है। माया तुम्हे मैं छोड़ दूंगा अपनी बाइक पर।
श्रद्धा- वो सब तो ठीक है। ये अनामिका अभी तक नहीं मिली।
दीप्ती- अरे यार हो सकता है कि बिना बताए ही घर चली गई हो। तो हम भी चलते हैं।
माया- हां। शायद।
उत्कर्ष- चलो फिर बाय।
सब अपने अपने घर चलें जाते है। दित्या, दक्ष और दर्शित वहीं रुक जाते है बहाना बना कर।
दित्या- मतलब अब हमारी फैमिली के अलावा भी यहां कोई आ गया है।
दक्ष- पर वो है कौन? और उसे ये क्यों नही पता की हमारी फैमिली को और हम जैसे बाकी सब को वहां जाने की मनाई है।
दर्शित- पता नही। भाई, चाचू और मां को बताना पड़ेगा।
ये कहकर वो तीनों भी घर चले जाते है। ये सब बातें वहीं छिप कर अनामिका सुन रही थी।
अनामिका (खुदसे)- आखिर ये नया किरदार कौन है जिसे मैं नही जानती। पता लगाना पड़ेगा।
उधर माया और विक्रांत एक साथ बाइक पर उसके घर जा रहे थे। माया विक्रांत को ही देख रही थी। विक्रांत को भी एहसास होता है की उन दोनों के बीच की टेंशन अब खत्म होगई थी और माया भी उसकी दोस्त बनने के लिए रेडी थी।
माया को उसके घर छोड़ कर और उसे बाए करके विक्रांत भी अपने घर चला जाता है। अंदर आकर माया अपने पैरेंट्स से गले मिलती है और खाना खा कर अपने रूम में चली जाति है।
माया अपने बिस्तर पर आकर आराम से लेट जाति है। थोड़ी देर बाद वो चार्ली के पास उठकर आती है। चार्ली को उठाकर उसकी रिकॉर्डिंग देखने ही वाली होती है की उसकी नज़र अपने कपड़ों पर लगी मिट्टी और कीचड़ पर जाती है। माया ये देखकर अपनी नाक सिकोड़ लेती है और चार्ली को स्टडी पर रख कर जल्दी से नहाने चली जाति है। फिर आकर फिर से बिस्तर पर लेट जाति है।
माया सोचने लगती है उन सब चीजों के बारे में जो बीतें कुछ दिनों में हुईं थीं। पहले तो उसकी पापा की वो बात, फिर वो विक्रांत की शॉप वाले दिन वाली सारी घटनाएं, फिर वो दित्या और उसके भाइयों के साथ वाला किस्सा, अनामिका के सामने से बॉटल का अपने आप घूमना और फिर आज जंगल में जो भी कुछ हुआ।
माया- यहां कुछ न कुछ तो बहुत अजीब चल रहा है। अब तो मुझे ही सच का पता लगाना पड़ेगा।
माया ये सोचकर सोने ही वाली थी की तभी स्टडी के कोने पर रखा चार्ली अपने आप गिर जाता है और उसपर वोही वीडियो चल जाति है। माया कैमरा गिरने की आवाज सुनकर उठ जाति है। उठकर देखती है तो वोही वीडियो चल रही होती है। माया पूरी वीडियो देख कर काफी डर जाति है और चौंक जाति है।
माया- मतलब वो सच में है और हमारे बीच ही हैं?
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