तभी मनोहर ने सैनिक के चाबुक को पड़ा और कहा ।)
मनोहर : बस बहुत हो गया रुक जाओ!
सैनिक 2 : लेकिन छोटे मालिक अगर हमने मलिक की आज्ञा का पालन नहीं किया तो वह हमें सजा देंगे ।
मनोहर : कोई बात नहीं अब जो होगा देखी जाएगी अगर कुछ पूछे तो मेरा नाम लगा देना जो किया है मैंने किया है।
( मनोहर ने तारा को उठाकर बिताया और अपनी जेब से पानी निकाल कर तारा को पिलाया।)
सैनिक 2 : छोटे मालिक यह क्या कर रहे हैं आपको इसकी बहुत बड़ी सजा मिल सकती है।
मनोहर : मुझे सजा मंजूर है लेकिन इस वक्त निर्दोष को बेमतलब की सजा देनी मंजूर नहीं ।
सैनिक 2 : लेकिन छोटे मालिक आपको इन सब चीजों के बीच इसीलिए रखा जाता है ताकि आप इन लोगों को सजा देते हुए देख सके।
मनोहर : मैं जानता हूं पर यह मेरा आदेश है अब तुम चुप रहोगे ।
( तभी मनोहर ने सैनिक 1 की तरफ़ देखा तो सैनिक 1 सूरज को चाबुक मार रहा था मनोहर ने सैनिक 1 को रोकते हुए कहा। )
मनोहर : सैनिक रुको !
( सैनिक 1 भी रुक गया सूरज भी थक कर वहीं बैठ गया मनोहर ने तारा को पानी पिलाया और तारा को होश आ गया तभी मनोहर ने तारों को सहारा दिया और आगे तक लाया तभी मनोहर ने कहा। )
मनोहर : अब तुम दोनों में से किसी का भी चाबुक नहीं चलना चाहिए यह मेरा आदेश है और यह दो गोले भी निकालो अभी !
सैनिक 1 : लेकिन मालिक के आदेश का क्या हम उनके आदेश के बगैर ऐसा कुछ भी नहीं कर सकते ।
मनोहर : यकीन रखो उन्हें कुछ पता नहीं चलेगा बस अपना मुंह बंद रखना ।
सैनिक 2 : लेकिन सच्चाई छुपाने पर हमें और भी कड़ी सजा मिल सकती है।
मनोहर : ( चिल्लाते हुए) तुम्हें अभी भी अपनी सजा की पड़ी है इन लोगों के साथ क्या हो रहा है तुम्हें वो नहीं दिख रहा क्या गलती है इन लोगों की बस यह कहीं और से आए हैं ।
सैनिक 2 : बिल्कुल भी नहीं छोटे मालिक यह कहीं और से नहीं शैतान के यहां से आए हैं ।
मनोहर : अच्छा तो फिर तुम्हें भी शैतान के यहां ही चले जाना चाहिए वहीं के लायक हो तुम खबरदार जो अब मेरी बात नहीं मानी तो तुम्हारे मालिक तो बाद में देखेंगे तुम्हें लेकिन मैं यही की यही जिंदा गाढ़ दूंगा तुम्हें पता है इस गांव में मेरे से ज्यादा शक्तिशाली और कोई भी नहीं है तो अपनी जान संभल के रखना।
( दोनों सैनिक डर गए तभी सैनिक 1 ने कहा।)
सैनिक 1 : जैसी आपकी आज्ञा छोटे वाले हम अभी सब कुछ करते हैं।
( सैनिक 1 और 2 ने दोनों ने दोनो गोले निकाल दिए सूरज संभलता हुआ खड़ा हुआ तभी मनोहर ने कहा।)
मनोहर : सैनिकों आगे बढ़ो लेकिन ध्यान रहे मैदान में पहुंचने से कुछ ही दूरी पर रुक जाना।
( दोनों सैनिक गोलों को लेकर आगे बढ़ गए तभी मनोहर ने सूरज और तारा दोनों को वहीं कुछ देर बैठकर आराम करने को कहा कुछ देर बाद सूरज और तारा आगे बढ़े तभी तारा ने कहा। )
तारा : आपका धन्यवाद आपने हमारी जान बचा ली ।
सूरज : मुझे कल रात के लिए माफ करना मुझे लगा आपको सही में अपने बापू जी के जैसे हैं ।
मनोहर : कोई बात नहीं मुझे सब वैसा ही समझते हैं लेकिन हम लोगों के बीच हर पल कोई ना कोई बात पर झगड़ा होता ही रहता है ।
तारा : लेकिन आपने हमारी जान बचाई इसलिए आपको सजा भी मिल सकती है आप हमारे लिए अपनी जान खतरे में क्यों डाल रहे हैं ?
मनोहर : मुझे कुछ नहीं होगा मैं अपनी रक्षा कर सकता हूं मेरी फिक्र मत करो।
सूरज : जब आप किसी को तकलीफ में देख ही नहीं सकते तो आप अभी तक कि यहां क्यों है आप यहां से गई क्यों नहीं ?
मनोहर : देखो यहां से जाना बहुत आसान है मेरे लिए तो और भी ज्यादा क्योंकि यहां का सबसे ज्यादा अच्छा खिलाड़ी मैं ही हूं मतलब आज तक किसी ने भी द्वंद में मुझे नहीं हराया ।
तारा : तो फिर अब तक आप यहां क्यों है गए क्यों नहीं ?
मनोहर : देखो मैं यहां से जा सकता था लेकिन मेरे यहां से जाने से दिक्कत सोल्व नहीं हो जाएगी यहां की दिक्कत है मेरे बापू जी जो कि हर एक के साथ इसी तरह का व्यवहार करते हैं छोटी सी गलती होने पर न जाने किस किस तरह की सज़ा सुना देते हैं और मेरी बीवी जो बापूजी को इस तरह की सलाह देती है अब सब लोगों को इन दोनों के कारनामों से बचने के लिए किसी को तो होना चाहिए ना!
सूरज : तो आप अपनी जिंदगी लोगों को बचाने में बिताते हैं लेकिन क्यों ?
मनोहर : क्योंकि यह मेरा गांव है मुझे गांव से प्यार है लेकिन बदकिस्मती से मैं इस गांव का मालिक नहीं बन सकता क्योंकि मेरे बापू जी को लगता है कि मैं इस गांव के मालिक बनने के लायक नहीं हूं ।
तारा : लेकिन मुझे तो लगता है आप सबसे अच्छे मलिक बनेंगे।
मनोहर : धन्यवाद
सूरज : अगर आप कुछ कर ही नहीं सकते किसी को बचाने के लिए तो यहां पर रुकने का क्या फायदा है ?
मनोहर : इसीलिए तो मेरे दिमाग में बहुत कुछ चल रहा है जल्दी बापूजी का ही सब काम खत्म होगा
तारा : लेकिन कैसे ?
मनोहर : वह सब छोड़ो और मेरी बात मानो यहां से चले जाओ मैं तुम्हें गांव के बाहर तक छोड़ देता हूं उसके बाद तुम चले जाना और मैं यहां पर सब कुछ संभाल लूंगा ।
सूरज : अच्छा क्या कहोगे अपने बापू जी से ?
तारा : और कैसे बचाओगे इतने सारे लोगों को ?
मनोहर : अब तक सबको बचाता आ रहा था और रही बात बापूजी की तुम दोनों के भागने का बहाना है बहाने तो बचपन से ही बहुत बनता आया हूं बहाना तो आराम से दे दूंगा।
तारा : लेकिन फिर भी हम नहीं जाएंगे।
मनोहर : लेकिन क्यों ?
सूरज : क्योंकि हम भी इस गांव के लोगों को बचाना चाहते हैं ।
मनोहर : नहीं बचा पाओगे तुम दोनों समझ नहीं रहे हो कल तुम दोनों मर जाओगे बापू जी तुम्हें जिंदा नहीं रहने देंगे ।
तारा : हमारी चिंता मत करो मुझे किसी पर पूरा यकीन है वह हमें किसी न किसी तरह बचा ही लेगा ।
मनोहर : किस पर ?
सूरज : वो तो मुझे भी नहीं पता तारा किस पर यकीन है ?
तारा : याद है वो काले कपड़े पहने आदमी उसने हमसे वादा किया था कि जब भी हमें जरूरत पड़ेगी वह अपने आप आ जाएगा तो कल भी हमें किसी न किसी तरह चाहिए लेगा।
सूरज : वो आदमी कोई जादूगर नहीं था ।
तारा : वो 1 मिनट में सब कुछ ठीक कर देगा हम उसे जानते नहीं है पता नहीं कहां मिलेगा ?
मनोहर : तभी तो कह रहा हूं तुम्हारी मदद कोई नहीं कर पाएगा चले जाओ यहां से मैं तुम दोनों को गांव के बाहर छोड़ आऊंगा ।
तारा : नहीं!
सूरज : मैं तुम्हारे साथ हूं इस गांव को आजाद करके ही बाहर जाएंगे ।
मनोहर : तुम्हारा शुक्रिया लेकिन इस वक्त तुम्हारी जान ज्यादा जरूरी है बेशक बाद में वापस लौट आना।
तारा : मनोहर जी हमारी जान खतरे में हो तो हमें कोई दिक्कत नहीं है लेकिन इस काम को इस तरह परेशान होता देख हम यहां से भाग नहीं सकते ।
मनोहर : जैसी तुम्हारी इच्छा सामने देखो सैनिक वहीं खड़े हैं चलो।
( मनोहर सूरज और तारा से दोनों सैनिकों के पास पहुंचे तभी मनोहर ने कहा। )
मनोहर : यहां से मैदान कितनी दूर है ?
सैनिक 1 : लगभग 200 मीटर
मनोहर : ठीक है अभी तुम इन्हें बिल्कुल वैसे जैसे यह वहां से निकले थे उसी तरह वापस से बांध दो!
( सैनिकों ने तारा और सूरज को वापस बांध दिया तभी मनोहर ने कहा।)
मनोहर : लेकिन इस बार चाबुक नहीं चलना चाहिए वरना मेरे हाथ तुम लोगों को नहीं छोड़ेंगे ।
सैनिक 2 : ( डरते हुए) जैसी आपकी आज्ञा छोटे मालिक !
( इतना कहकर सब लोग रक्स मौदान की ओर बढ़ चले रक्स मौदान में पहुंचते- पहुंचते उन लोगों को सुबह के 7:00 बज गई थी जैसे ही सब लोग मैदान में पहुंचे उन्हें लीला कुशीम और उनके साथ चार सिपाही वही रक्स मैदान में पहले से ही मौजूद मिले सैनिक तारा और सूरज को लेकर कुशीम तक पहुंचे मनोहर भी उनके पीछे पीछे आ गया कुशीम ने तारा और सूरज को देखा तो हैरान हो गया क्योंकि वह दोनों खून से लटपट थे तभी खुशी में दोनों के पास आते हुए कहा।)
कुशीम : खून कितना मारा तुम लोगों ने इन विचारों को ।
( सैनिक 1 और 2 की नज़रे नीचे हो गई तभी कुशीम ने गुस्से में कहा। )
कुशीम : इतनी आसानी से कैसे ले आए यहां तक कोई बात नहीं तुम लोगों ने दया कर दी लेकिन मैं नहीं करूंगा ।
लीला : अजब है तुम्हारी लीला जब तुम्हें कहा था कि अगर तुम लोगों ने इन लोगों के साथ वह नहीं किया जो हमने कहा तो तुम लोगों को उनके हिस्से की सजा मिलेगी फिर भी तुम लोगों ने उनके साथ दया की कैसे बापूजी इन्हें भी सजा मिली चाहिए।
( लीला की बात सुन दोनों सैनिको थर-थर काटने लगे तभी कुशीम ने कहा।)
कुशीम : नहीं बहू इन्हें सजा देने से क्या हुआ सजा तो इन दोनों को मिलनी चाहिए।
( कुशीम ने तारा का मुख पढ़ते हुए कहा। )
कुशीम : मुझे तो तुम्हारे ऊपर दया आ गई कितनी थके हुए लग रही हो चलो तुम्हें दो रास्ते देते हैं ।
मनोहर : ( मन में ) बापूजी को किसी के ऊपर दया आ गई मतलब ही पैदा नहीं होता क्या चाहते हैं बापूजी क्या करना चाहते हैं कहीं ऐसा तो नहीं वह इन दोनों के साथ कुछ गलत करेंगे अब क्या होगा कैसे बचाऊंगा मैं इन दोनों को?
कुशीम : दोनों में से एक रास्ता तो चलना ही होगा सोच लो मंजूर है ?
सूरज : आप रास्ता बताएं हम अपने आप चुन लेंगे ।
कुशीम : हए! क्या बात है तुम लोगों ने मेरा दिल जीत लिया तो सुनो पहले रास्ता या तो सारी सजा अकेले तुम यानी कि सूरज अपने सर ले ले या फिर तारा सारी मुसीबत अपने सर ले ले मतलब दोनों में से एक दूसरे की मुसीबत अपने से ले सकता है और दूसरे की जान बचा सकता है।
मनोहर : ( हैरानी से मन में ) ये बापू जी करना क्या चाहते हैं यकीन नहीं हो रहा इस तरह की शर्त रखने का मतलब क्या है चाहते क्या है बाबूजी ?
( तारा और सूरज भी हैरानी से एक दूसरे को देख रहे थे तभी कुशीम ने कहा।)
कुशीम : मेरे पास समय नहीं है थोड़ी जल्दी अपना फैसला सुनाओ ।
सूरज : मैं आपकी पहली शर्त करने को तैयार हूं ।
तारा : बिल्कुल नहीं दूसरी शर्त मानी जाएगी ।
सूरज : अच्छा तू बताएगी मैं बड़ा हूं मैं बताऊंगा क्या होगा और क्या नहीं !
तारा : मैं छोटी हूं तो मैं डिसाइड करूंगी।
कुशीम : तुम दोनों को लड़ता देखा अच्छा नहीं लग रहा थोड़ा जल्दी कहीं मेरा मन ना बदल जाए ।
सूरज : हमें आपकी पहली शर्त...
तारा : लेकिन भैया ।
सूरज : बस अब तू कुछ नहीं बोलेगी तुझे मेरी कसम ।
( सूरज के मुंह से उसकी कसम सुन तारा चुप हो गई अभी कुशीम ने कहा। )
कुशीम : तो तुमने फैसला ले लिया पहली पहली शर्त ?
सूरज : जी !
( कुशीम ने हल की तरफ इशारा किया और कहा। )
कुशीम : तो फिर शुरू हो जाओ ।
सूरज : मैं कुछ समझ नहीं ।
कुशीम : सब समझ जाओगे सैनिको इसकी रसिया खोलो ।
( कुशीम का आदेश मानते हुए सूरज की रसिया खोल दी तभी कुशीम ने कहा ।)
कुशीम : में चलो इस जगह पर हल चलाना शुरू करो ।
( मनोहर ,तारा और सूरज हैरानी से कुशीम और मैदान की तरफ देखने लगे मैदान बंजर था जमीन में दरारें पड़ी हुई थी उस पर हल चलाना बहुत मुश्किल था ऊपर से कड़ाके की धूप तभी सूरज ने कहा। )
सूरज : इस जगह पर हल चलाने से कुछ होगा ही नहीं इस जगह को पहले पानी देकर कुछ नरम करना होगा और फिर हल चलाने से शायद कुछ बात बन जाए।
कुशीम : वही तो लेकिन मैं चाहता हूं तुम इस जगह को खोदो पूरी जगह पर हर चलाओ और इस मैदान में एक खड्डा बनाओ ।
सूरज : क्या इस मैदान में खड्डा बनाना है लेकिन एक कैसे हो सकता है जमीन बंजर हो चुकी है ।
कुशीम : हां बिल्कुल मैं सब जानता हूं अब अपना काम जल्दी शुरू करो सैनिक को तारा को अन स्तंभ पर बंद दो !
( कुशीम ने मैदान में लगे हुए दो स्तंभ की तरफ इशारा किया तभी सैनिको ने तारा को एक स्तंभ के सहारे बांध दिया तभी कुशीम ने अपने एक सैनिक को हां का इशारा किया तभी वह सैनिक अपने हाथ में एक चाबुक लाया और उसे कुशीम को थमा दिया तभी कुशीम तारा के पास गया और कहा।)
कुशीम : अपना काम शुरू करो और रुकना मत तुम्हारे रुकने की सजा तुम्हारी बहन को चुकानी पड़ सकती है।
सूरज : लेकिन हमारे साथ में ऐसा कुछ भी नहीं था आपने कहा था कि या तो मुझे या फिर तारा को सजा भोगनी होगी।
कुशीम : बिल्कुल लेकिन उस सजा में रुकने का अंजाम दूसरे वाले को भुगतना होगा ।
तारा : लेकिन आपने ऐसा कुछ भी नहीं कहा था ।
कुशीम : में कब क्या करता हूं वो तो खुद मुझे भी नहीं पता होता ।
( तभी कुशीम ने अपना चाबुक तारा को मारते हुए कहा।)
कुशीम : काम शुरू करो सूरज कहीं ऐसा ना हो तुम्हारी बहन यही मर जाए ।
( कुशीम के हाथ तब तक नहीं रुके जब तक सूरज ने जाकर उसे हल को न उठाया और खड़ा करना शुरू न किया इस दौरान मनोहर भी कुशीम को रोकने के लिए आगे बढ़ा पांच सैनिकों ने मिलकर मनोहर को रोकने की कोशिश की लेकिन हैरानी की बात यह थी पांच सैनिक मिलकर भी मनोहर को नहीं रोक पा रहे थे लेकिन तभी लील मनोहर के सामने आई और कहा। )
लीला : अजब है तुम्हारी लीला अब एक कसम भी बढ़ाया तो मेरी लाश से गुजारोगे।
( मनोहर औरतों की बहुत इज्जत करता था इसलिए वह यही वही खड़ा हो गया पांच सैनिको ने भी मनोहर को छोड़ दिया तभी लीला ने कहा। )
लीला : अजब है तुम्हारी लीला अब यहां से एक कदम भी आगे मत बढ़ाना वरना.....
मनोहर : ठीक है !
( मनोहर जो कि किसी को भी तकलीफ में नहीं देख सकता था आज सूरज को इतनी तेज धूप में हल चलाते हुए देख रहा था जिसका कोई फायदा नहीं हो रहा था सूरज पिछले 10 मिनट से उसे खेत में हाल चल रहा था लेकिन उसे वक्त थोड़ा सा भी खड्डा नहीं हुआ था तभी कुशीम ने कहा ।)
कुशीम : अपने हाथ चलाओ वरना मेरे हाथ चलेंगे ।
( सूरज ने कुशीम का कहा माना और अपनी पूरी ताकत लगाकर खड्डा खोदने लगा सूरज को खड्डा खोदते हुए 2 घंटे बीत चुके थे सूरज लंबी-लंबी सांस ले रहा था तारा उसकी हालत देख रोती जा रही थी लेकिन वह चुपचाप वही खड़ी थी क्योंकि उसे पता था कुछ कर तो सकती नहीं थी मनोहर भी लीला की कसम के कारण वहीं खड्डा था तभी सूरज ने हांफते हुए कहा । )
सूरज : ( हांफते हुए ) पानी कम से कम थोड़ा पानी तो मिल सकता है ?
कुशीम : बिल्कुल नहीं आगे बढ़ो ।
( सूरज हांफ रहा था तभी कुशीम में तारा को मारना शुरू किया और कहा। )
कुशीम : तुम्हारे हाथ रुके ना ।
( सूरज ने फिर से हल उठाया और खड़ा खोदना शुरू किया तारा भी दर्द सह रही थी मनोहर वही चुपचाप खड़ा तमाशा देख रहा था कुछ देर बाद सूरज वहीं बेहोश हो गया तभी तारा ने चिल्लाते हुए कहा । )
तारा : ( चिल्लाते हुए ) भइया उठो क्या हुआ आपको ?
( कुशीम हंसने लगा और तारा को मारना शुरू किया तारा दर्द से तड़प रही थी तभी कुशीम का एक सैनिक सूरज के पास गया उसने उसको उठाया तो पाया कि सूरज बेहोश हो चुका था तभी सैनिक ने कहा। )
सैनिक : मालिक यह तो बेहोश हो गया।
( कुशीम ने तारा को छोड़ा और सूरज के पास आया तारा सूरज की हालत देख कर रोती जा रही थी तभी कुशीम सूरज के पास आया और नीचे बैठा तभी कुशीम ने सूरज के बाल पकड़े और उसका मुंह ऊपर खींचते हुए कहा। )
कुशीम : क्यों निकल गई हवा बडा आया था हीरो बनने इस गांव को बचाने देख क्या हालत हो गई तेरी ।
( सूरज बेहोशी की हालत में भी पानी मांग रहा था तभी कुशीम ने कहा। )
कुशीम : ध्यान रहे इसे पानी खाना कुछ भी नहीं मिलना चाहिए ।
( दोनों सैनिकों ने हामी भारी कुशीम ने कहा। )
कुशीम : ध्यान रखना अगर इस पर दया की तो तुम दोनों को दया करने के लायक नहीं छोडूंगा ।
( दोनों सैनिक घबरा गए और अपना सर झुका लिया तभी कुशीम ने गुस्से से मनोहर को देखते हुए कहा। )
कुशीम : तुम हमारे साथ घर चलो मुझे तुमसे बात करनी है ।
( अभी भी तारा स्तंभ पर बंधी हुई थी और रोती जा रही थी तभी तारा ने रोते हुए कहा।)
तारा : ( रोते हुए ) मुझे खोलते जाओ मुझे मेरे भैया के पास जाने दो ।
कुशीम : ध्यान रहे यह लड़की भी यहीं बंधी रहे तब तक इसे खोल ना जाए जब तक मेरा आदेश ना हो ।
( दोनों सैनिक ने हां सिर हिलाया कुशीम, मनोहर और लीला गाड़ी में बैठ कर चले गए और घर चले गए तारा वहीं पर रो रही थी और सूरज उस मैदान में बेहोश पड़ा था तरा ने रोते हुए सैनिकों से कहा।)
तारा : ( रोते हुए ) मुझे खोल दो मुझे भैया पास जाने दो ।
( सैनिक 1 तारा के पास आया और उसके बाल पढ़ते हुए कहा। )
सैनिक 1 : तुमने सुना नहीं मालिक ने क्या कहा अब चुपचाप यही खड़े रहो वरना इस बार हम भी दया नहीं दिखाएंगे।
तारा : ( दर्द में ) पिछली बार कौन सी दिखाई थी पिछली बार मनोहर जी ने हमें बताया था याद करो !
सैनिक 1 : अच्छा बड़ी जबान चल रही है ना तेरी अब देख क्या होता है तेरे साथ ।
( सैनिक 1 ने तारा के बाल छोड़ा और उसका गला पकड़ लिया सैनिक 1 की पकड़ इतनी तेज थी कि तारा को सांस भी नहीं आ रही थी तभी सैनिक 2 ने जाकर उसे रोका और कहा । )
सैनिक 2 : रुक जा भाई कहीं ऐसा ना हो इसके चक्कर में हमें सजा मिल जाए वैसे भी मलिक ने इसे माफ किया है अपना गुस्सा शांत कर और चल यहां से ।
( सैनिक 1 ने अपना गुस्सा शांत किया और दोनों सैनिक बाहर चले गए और रक्स मैदान को ताला लगा दिया उसकी दीवारें इतनी बड़ी थी कि कोई इंसान उसके आर पार जा ही नहीं सकता था वहीं दूसरी तरफ कुशीम लीला और मनोहर महल में पहुंचे कुशीम अपनी कुर्सी पर बैठ गया ।
आखिर क्यों बैठा था कुशीम अपनी कुर्सी पर ?
क्या फ़ैसला लेना चाहता था वो ?
क्या कोई नई गड़बड़ होने वाली है?
जानने के लिए पढ़िए "सच्चाई की लड़ाई"
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