( तभी दूर से मनोहर ने उन्हें रोकते हुए कहा । )
मनोहर : सैनिकों रुको !
( सैनिकों ने मनोहर को दूर महल के छत्ते के नीचे खड़ा पाया छत्ता एक ऐसी जगह थी जहां पर दो कुर्सियां लगी थी और वहां पर धूप भी नहीं आती थी तभी मनोहर सैनिकों के पास गया और कहा।)
मनोहर : सज़ा इन लोगों को मिली है हम लोगों को नहीं जो इनके चक्कर में हम पूरी दोपहर गर्मी में रहे चिंता मत करो मैं वहां बैठकर सब कुछ देख रहा था सब कुछ समझ रहा था यहां पर ऐसा कुछ भी नहीं हुआ जैसे तुम सोच रहे हो।
सैनिक 2 : शुक्र है छोटे मालिक आप ठीक हैं अगर आपको कुछ हो जाता तो ?
मनोहर : मुझे कुछ नहीं हो सकता मैं अपनी सुरक्षा करना बखूबी जानता हूं
सैनिक 1 : जी !
सैनिक 2 : छोटे मालिक आप ख्याल रखना।
( इतना कहकर मनोहर वही छत्ते के नीचे चला गया चारों सैनिक तारा और सूरज के आस - पास घेरा बनाकर खड़े थे शाम बीत गई रात हो गई लेकिन दिक्कत यह थी उनका इलाका ऐसा था जिधर दिन में जितनी गर्मी रात में उतनी ही ठंड उस वक्त वहां खून जमा देने वाली ठंड थी तभी मनोहर ने कहा।)
मनोहर : तुम सब भी यहां आकर बैठ सकते हो वैसे भी काफी समय से खड़े हो।
सैनिक 2 : नहीं छोटे मालिक हम आपके साथ नहीं आ सकते ।
मनोहर : यह मेरा आदेश है यहां आओ।
( सैनिक मनोहर के पास है आए और उन्होंने लड़कियां जलाई रात होने के कारण सब लोग सो चुके थे चारों सैनिक भी थकावट के कारण सो चुके थे लेकिन तारा और सूरज ठंड के मारे कप कपा रहे थे ठंड इतनी बढ़ चुकी थी कि उसमें सांस लेना भी मुश्किल हो रहा था और उस घातक ठंड में बाहर खड़े रहना बहुत बड़ी सजा थी तारा और सूरज ठंड में कुछ देर तक खड़े रहे थोड़ी देर बाद जब चारों सैनिक सो गए ।
तब मनोहर ने कुछ और लड़कियां निकाली और सूरज और तारा की तरफ ले गया सूरज और तारा को लग रहा था कि दोनों अब नहीं बचने वाले मनोहर उनके आसपास आग लगा रहा है जिसमें वह दोनों जलकर मर जाएंगे । लेकिन मनोहर तो उन दोनों की मदद करने के लिए एक छोटी सी आग लगा रहा था मनोहर ने आग लगाई और फिर वहां से जाने लगा तभी तारा ने मनोहर से कहा।)
तारा : आपका बहुत-बहुत धन्यवाद आपने हमारी मदद की ।
सूरज : लेकिन क्यों आपने हमारी मदद क्यों की ?
मनोहर : बस तुम्हें इस तरह तड़पते हुए नहीं देख सकता था इसलिए मैंने तुम्हारी मदद कर दी ।
तारा : तो क्या आपने उस आदमी को आते हुए भी देखा था ?
मनोहर : आदमी कौन सा आदमी ?
सूरज : अरे वही आदमी जिसने काले कपड़े पहने थे ।
मनोहर : शायद तुम भूल गए हो काले कपड़े केवल वही पहन सकता है जिसके पास बहुत पैसा हो और इस गांव में इस महल के लोगों के अलावा और किसी के पास पैसा नहीं लगता है तुम लोगों को गलतफहमी हुई है ।
तारा : गलतफहमी तो नहीं हुई लेकिन हो सकता है कोई बात है जो हमें अभी तक नहीं पता ।
सूरज : कोई नहीं बहुत सारे हमें कई सारे रहस्य नहीं पता ।
मनोहर : उन्हें जानने की कोशिश मत करना क्या पता नही शायद उसकी सजा इस सजा से भी भयंकर और शायद उस वक्त मैं तुम्हारी मदद भी ना कर पाऊं।
सूरज : आपका बहुत-बहुत धन्यवाद लेकिन इंसाफ तो मिलना चाहिए ।
मनोहर : तुम दोनों चले जाओ यहां से अपने गांव में शांति से रहो जिस तरह से यहां पर लोग रह रहे हैं उन्हें रहने दो अपनी जान खतरे में मत डालो ।
सूरज : अपनी जान बचाने के लिए हम लोग इतने सारे लोगों की जिंदगी बर्बाद नहीं कर सकते ।
तारा : बिल्कुल भैया हमें इन सब लोगों को भी बचना होगा ।
मनोहर : अच्छा तो कैसे करोगे ?
सूरज : हमें जो भी करना होगा हम तुम्हें क्यों बताएंगे हमे सब पता है तुम जाकर सबसे पहले अपने बापूजी को सारा सच बता दोगे और हमारा सारा प्लान खत्म कर दोगे ।
तारा : तुमने हमारी मदद की इसके लिए धन्यवाद लेकिन हमें किसी भी तरह यहां से निकलना होगा ।
सूरज : और सबको बचना भी होगा।
मनोहर : (हंसते हुए ) भूल जाओ यहां से निकलना नामुमकिन है आज तक कोई नहीं निकल पाया।
( इतना कहकर मनोहर छत्ते में जाकर बैठ गया सूरज और तारा दोनों बहुत थक गए थे इसलिए दोनों की वहीं खड़े-खड़े सो गए सुबह होते ही सबसे पहले मनोहर ने उठकर वह लड़कियों की जगह साफ की ताकि किसी को पता ना चले कि उसने सूरज और तारा की मदद करने की कोशिश की है सारी लड़कियां हटाकर मनोहर फिर से जाकर छत्ते के नीचे लेट गया बैठ गया कुछ देर बाद चारों सैनिक उठे और पहले की तरह सूरज और तारा के आस- पास घेरा बनाकर खड़े हो गए तभी वहां पर कुशीम और उसकी बहू लीला कुशीम और लीला को देखकर चारों सैनिक ने अपने हाथ आगे किया और झुकते हुए कहा । )
सैनिक : मलिक को हमारा सलाम
कुशीम : तो अभी तक सो रहे हैं यह दोनों !
सैनिक 4 : जी मालिक
कुशीम : तो उठाने का तरीका अपनाओ !
सैनिक 4 : जैसी आपकी आज्ञा मलिक।
( इतना कहकर चारों सैनिक वहां से चले गए तभी सैनिक 3 और 4 अपने हाथों में दो लंबी और पतली पाइप ले आए पीछे से सैनिक 1 और 2 ने पानी चला दिया । पानी सीधा सूरज और तारा के मुंह पर पढ़ रहा था सांस ना ले पाने के कारण दोनो पानी से बचने की कोशिश करते हुए चिल्ला रहे थे सूरज और तारा की चीखें सुनकर मनोहर भी घबरा कर उठ गया और उसके पास आया और कहा )
मनोहर : बापूजी रुकिए ये आप क्या कर रहे हैं रुक जाइए वो लोग मर जायेंगे ।
कुशीम : जीते जी मारना ही तो है शांत रहो !
मनोहर : लेकिन बापूजी !
( इससे पहले मनोहर कुछ कह पाता लीला ने उसे बाजू से पकड़ते हुए उसे पीछे खींचा और कहा। )
लीला : अजब है तुम्हारी लीला जी बापूजी के फैसले पर सवाल कर रहे हो चुप चाप यहां खडे रहो!
( मनोहर आगे जाकर सैनिको को रोकना चाहता था लेकिन लीला ने उसे पकड़ रखा था जिसके कारण मनोहर आगे नहीं बढ़ पा रहा था कुशीम ने ये सब कुछ नहीं देखा था क्योंकि लीला मनोहर को पड़कर लीला से दूर खींच लिया था लगभग अगले 5 मिनट तक मनोहर को लीला ने पकड़ा कहा था तभी कुछ देर बाद लीला ने हाथ का इशारा कर सैनिकों को रोक दिया सैनिक 1 और 2 ने पानी का बहाव बंद किया सैनिक 3 और 4 ने पाइप नीचे फेंक दी सूरज और तारा लंबी लंबी सांस ले रहे थे लीला ने भी मनोहर को छोड़ दिया तभी कुशीम दोनों के बीच जाकर खड़ा हो गया और कहा। )
कुशीम : कैसा लगा स्वागत ?
सूरज : ( हाफते हुए) ये स्वागत था तो ऐसा स्वागत कभी नहीं देखा और ना ही किसी के साथ होना चाहिए ।
( कुशीम ने सूरज का गला पकड़ लिया और कहा। )
कुशीम : तुम्हारी इन्हीं बेवकूफों से भरी बातों की वजह से ही तुम्हें सजा मिली थी भूल गए क्या ?
( सूरज दर्द में तड़प रहा था तभी तारा ने कहा। )
तारा : ऐसा मत कीजिए छोड़ दीजिए भैया को ।
( कुशीम ने सूरज का गला छोड़ और पीछे आते हुए कहा।)
कुशीम : बहुत प्यार है ना तुम्हें अपने भैया से मत करो क्योंकि प्यार कमज़ोरी होता है तुम्हें और कुछ सीखा पाऊं या ना सीखा पाऊं लेकिन यह जरूर सीखा दूंगा कि किसी से प्यार मत करना ।
तारा : प्यार कमजोरी नहीं ताकत होता है प्यार के लिए कुछ भी कर जा सकता है।
कुशीम : वही तो मैंने कहा प्यार में कुछ भी किया जा सकता है अपनी जान भी दी जा सकती है इसलिए तो प्यार कमजोरी होता है ।
तारा : गलतफहमी है आपको ।
कुशीम : गलतफहमियां तो बहुत हुई लेकिन अब होगा तुम्हारे मौत का तांडव पूरी दुनिया देखेगी मलिक के आगे बकवास करने का अंजाम क्या होता है मैं तुम्हें मौत की सजा सुनाता हूं पहले तो मुझे लगा था तुम लोग मौत के लायक नहीं लेकिन बहु के समझने पर समझ आया तुम लोगों को मौत ही मिलनी चाहिए ।
( मनोहर हैरानी से लीला की तरफ देख रहा था तभी लीला ने कुशीम की तरफ आते हुए कहा। )
लीला : अजब है आपकी लीला बापूजी महान है आप आप आपने मेरी बात मान ली ।
कुशीम : तुम्हारा दिमाग इतना अच्छा जो है बहू वरना इस नालायक की तरह तो नहीं मनोहर बापूजी आप ऐसे किसी की भी जान नहीं ले सकते ये गलत है।
कुशीम : यहां का मालिक मैं हूं तुम नहीं मेरी मौत के बाद भी तुम नहीं बन पाओगे इसलिए अपना दिमाग मत चलाओ और यहां पर चुपचाप खड़े रहो।
( तभी कुशीम ने फैसला सुनाते हुए कहा। )
कुशीम : मेरा अगला फैसला है अगले 24 घंटे इनके लिए नर्क के समान हो उसके बाद सभा बुलाई जाए उसमें इन दोनों में से एक की मौत होगी।
मनोहर ,तारा ,सूरज : ( धीमी आवाज में ) क्या ?
( चारों सैनिक ने अपना सर झुकाया और कहा। )
सैनिक : जैसी आपकी आज्ञा मालिक हम अभी जाकर पूरे गांव में यह बात फैला देते हैं ।
( इतना कहकर सैनिक 3 और 4 वहां से चले गए और सैनिक 1 और 2 वहीं खड़े रहे । )
लीला : अजब है तुम्हारी लीला सैनी को सैनिकों तुमने सुना नहीं बापूजी ने क्या कहा अगले 24 घंटे इन लोगों के लिए नर्क होंगे इस तरह बंधे रहने से इन्हें नर्क नहीं दिखेगा इन्हें खोलो ।
कुशीम : और रक्सा मैदान में ले आओ।
( कुशीम के में से रक्सा मैदान दोनों सैनिक और मनोहर की रू कहां गई तभी मनोहर ने कहा। )
मनोहर : बापू जी इन लोगों को ऐसी सजा देनी जरूरी है क्या ?
कुशीम : मैं तुमसे पूछा नहीं तुम्हें बताया गया है सैनिकों अगले 5 मिनट में वहां मिलो मनोहर तुम्हारी जिम्मेदारी है इन लोगों को सही सलामत वहां पहुंचने की वरना मुझसे बुरा कोई नहीं होगा ।
( इतना कह कर कुशीम और लीला वहां से चले गए तभी सैनिकों ने सूरज और तारा की रस्सी एक-एक कर खोली और उनके हाथ बंदे और दोनों की रस्सी एक एक सैनिक ने पड़ा रखी थी मनोहर सिर झुकाए वहीं खड़ा था तारा तब से मनोहर को ही देख रही थी उसने मन में सोचा।)
तारा : ( मन में ) इसने रात को हमारे लिए आग लगाई वह काले कपड़े पहने आदमी आया और इसने उसे नजर अंदाज किया और यहां पर जली हुई लकड़ियों की राख भी नहीं दिख रही और अभी यह अपने पिता से हमारे लिए लड़ रहा था क्यों क्या चाहता है यह यह है कौन ?
( तारा इतना सोच ही रही थी कि तभी सैनिक 2ने तारा की रस्सी खींची और उससे कहा। )
सैनिक 2 : अपने ख्यालों में खोई रहोगी तो दुगनी सजा मिलेगी चलो!
( इतना कहकर सब वहां से चलने लगे तारा और सूरज सबसे आगे दोनों सैनिक पीछे और मनोहर सबसे पीछे तभी वह लोग महल के दरवाज़े तक ही पहुंचे थे कि तभी कुशीम और लीला वापस आ गए कुशीम ने कहा।)
कुशीम : इस तरह लेकर जाओगे इन्हें अब तुम्हें ले जाने का सिलिका भी बताना होगा ।
सैनिक 1 और 2 : माफी मलिक कृपया कर बताएं किस तरह ले जाना है।
लीला : अजब है तुम्हारी लीला अब यह भी बापूजी ही बताएंगे !
कुशीम : कोई बात नहीं बहू पहली बार है बता देते हैं ।
( कुशीम ने दो बार तालियां बजाई तभी वहां पर चार सैनिक आए और दोनों के पांव में दो बड़े-बड़े गोले बांधकर चले गए तभी कुशीम ने कहा। )
कुशीम : 50 किलो का एक गोला इन्हें इन दो गोलों के साथ मैदान में लेकर आओ ।
सैनिक 1 और 2 : जैसी आपकी आज्ञा मालिक ।
( तभी कुशीम ने एक बार फिर से दो बार तालियां बजाई इस बार दो सुंदर औरतें जिन्होंने अपना सर झुकाया हुआ था वह आई और सैनिक 1 और 2 के आगे एक थाल में दो चाबुक लेकर आई तभी कुशीम ने कहा। )
कुशीम : उनके कदम रुकने पर यह चाबुक चलना चाहिए ध्यान रहे थोड़ी सी भी गलती और उनकी हिस्से की सजा तुम्हें मिलेगी।
( सैनिक 1 और 2 घबरा गए उन्होंने डरते हुए चाबुक लिया और महल से बाहर निकलने लगे मनोहर कुछ भी नहीं कर सकता था वह चुपचाप अपना सर झुकाए महल से बाहर निकल गया महल और रक्स मौदान 5 किलोमीटर की दूरी पर थे किसी भी इंसान के लिए 5 किलोमीटर बिना थके चलना नामुमकिन था उस वक्त गांव में कोई भी मौजूद नहीं था सब लोग महल में काम करने गए हुए थे तारा और सूरज के पांव में तो 50 50 किलो के गोले भी बंधे हुई थी जायज़ था कुछ दूर जाने पर दोनों थक जाते और वैसा ही हुआ लगभग 1 किलोमीटर भी नहीं चले थे और दोनों की सांस फूलने लगी उनके कदम रुकने लगे तभी सैनिकों को कुशीम कि वह बात याद आ गई जब कुशीम ने कहा कि अगर जरा सी भी दया दिखाई तो सूरज और तारा के हिस्से की सजा उन्हें मिलेगी इतना सोच दोनों सैनिकों की रुह कांप गई और उन दोनों ने अपनी आंखें बंद कर सूरज और तारा को चाबुक मारने शुरू किए सूरज और तारा की चीखें निकल रही थी वहीं दूसरी तरफ मनोहर की रूह कांप रही थी उससे सूरज और तारा का दुख देखा नहीं जा रहा था लेकिन सैनिकों के हाथ रख नहीं रहे थे लगभग अगले 1 किलोमीटर तक सैनिकों ने उन दोनों को चाबुक मारते हुए लेकर गए हर एक चीज की एक हद होती है रास्ते में ही तारा थककर अपने दोनों घुटनों के बल बैठ गई और चिल्लाते हुए कहा। )
तारा : ( चिल्लाते हुए) बस अब मुझसे और नहीं होगा।
( तारा के मुंह से यह सुन सैनिक 2 ने तारा के बालों से पढ़ते हुए उसे खड़ा किया और कहा। )
सैनिक 2 : नहीं होने का सवाल ही पैदा नहीं होता सजा मिली है करना तो पड़ेगा।
( सैनिक ने तारा के बाल छोड़ें और उसे चाबुक मारने शुरू किए तारा ने हिम्मत करते हुए अपने कदम बढ़ाए सूरज को भी यह सब देख अच्छा नहीं लग रहा था लेकिन तभी कुछ आगे जाने पर तारा बेहोश हो गई सूरज ने तारा की और जाने की कोशिश की तब सैनिक एक ने उसे पढ़ते हुए कहा ।)
सैनिक 1 : आगे बढ़ो तुम्हें उसके पीछे जाने की जरूरत नहीं ।
सूरज : लेकिन वह बहन है मेरी ।
सैनिक 1 : चाहे कुछ भी हो चलो
( सूरज को सैनिक धक्के से आगे ले गया वहीं तारा बेहोशी की हालत में पानी मांग रही थी तभी सैनिक 2 ने उसके पेट में पांव मारते हुए कहा।)
सैनिक 2 : लड़की उठ हमारे पास समय नहीं है जल्दी कर वरना मेरा चाबुक बोलेगा।
( तारा बेहोश थी तभी सैनिक ने अपनी आंखें बंद की और चाबुक मारने शुरू किया तारा दर्द से तड़प रही थी सूरज भी कुछ नहीं कर पा रहा था वह बस अपनी आंखों में आंसू लिए आगे बढ़ता जा रहा था 2 से 4 चाबुक पढ़ने पर सूरज ने पीछे मुड़कर देखा
अब क्या करेगा सूरज ?
क्या तड़पने देगा अपनी बहन को इसी तरह या फिर बचा लेगा ?
लेकिन कैसे सूरज को तो अपनी जगह से इजाजत ही नहीं थी ?
क्या मनोहर वहीं पर चुपचाप खड़ा सब कुछ देखता रहेगा ?
जानने के लिए पढ़िए " सच्चाई की लड़ाई । "
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