( इतना कहकर सूरज आगे बढ़ने लगा तारा भी उसके पीछे आ रही थी तभी उन्होंने गांव की चौखट पार की गांव की चौखट पार करते ही एक तेज हवा का झोंका आया जिसमे कुछ अखबार के कागज उड़ रहे थे तभी सूरज ने कहा।)
सूरज : वो देखो अखबार मतलब यहां पर कोई ना कोई तो रहता ही है चलो अंदर चलते हैं ।
तारा : ठीक है!
( सूरज और तारा अंदर जाने लगे कुछ दूर जाने पर वह लोग वहां के बाजार में पहुंचे पूरे बाजार में गिनती की चार दुकान थी वहां पर चार लोग खड़े थे और कुछ महिलाएं सब्जियां ले रही थी तभी सब ने उन दोनों को आते हुए देखा और सारे उनके आस-पास आकर खड़े हो गए तभी वहां पर कुछ कुशीम के सैनिक भी मौजूद थे लोगों को अपनी तरफ आकार आता देखा तारा घबरा गई लेकिन सूरज ने यह बात को आम समझा तभी 2 सैनिक जिनके हाथों में भले थे वह लोग सूरज और तारा की तरफ शक की नजर से देख रहे थे तभी उनमें से एक सैनिक ने कहा। )
सैनिक 1 : तुम लोग यहां के तो नहीं लग रहे हो कौन हो तुम ?
सूरज : जी हम पास के समूह से आए हैं ।
सैनिक 2 : पास का समूह मतलब ?
तारा : मतलब एक और गांव जो की बिल्कुल इसी गांव की तरह है ।
( लोग आपस में बड़बडा ने लगे तभी उनमें से एक सैनिक ने अपना भला सूरज की तरफ करते हुए कहा । )
सैनिक 1 : यह जरूर शैतान के यहां से आया है पकड़ लो इन लोगों को ।
तारा : ये आप क्या कह रहे हैं शैतान के यहां पर हमने अभी तो बताया साथ वाले समूह से आए हैं ।
( तभी दूसरे सैनिक ने भी अपना भला तारा की तरफ कर और कहा । )
सैनिक 2 : चुप रहे बेवकूफ लड़की तुझे नहीं पता औरतों को बोलने की इजाजत नहीं होती ।
( सूरज और तारा हैरानी से सैनिकों की ओर देख रहे थे तभी दूर से 1 सैनिक आया उसके हाथ में जंजीरे थी दूसरे और तीसरे सैनिक में मिलकर तारा और सूरज को जंजीरों में बांध दिया तारा और सूरज सैनिकों को रोकने की बहुत कोशिश कर रहे थे लेकिन किसी ने उनकी एक न सुनी और उन्हे बांधकर महल ले जाने लगे । महल पहुंचने के बाद सैनिकों ने तारा और सूरज को कुशीम के सामने घुटनों के बल बैठा दिया और तीनों ने एक साथ कहा। )
सैनिक : मलिक को हमारा सलाम !
कुशीम : कहो क्या हुआ है ?
सैनिक 2 : मालिक ये लोग शैतान के यहां से आए हैं ।
( कुशीम अपनी जगह से खड़ा हो गया मनोहर और लीला भी दोनों को हैरान से देख रहे थे तभी मनोहर ने कहा। )
मनोहर : ऐसा कैसे हो सकता है कोई शैतान के यहां से कैसे आ सकता है ?
लीला : अजीब है तुम्हारी लीला क्यों नहीं आ सकता ?
कुशीम : मनोहर बच्चों जैसी बातें मत करो तुम लोगों को कैसे पता यह लोग शैतान के यहां से आए हैं ?
(कुशीम ने सैनिकों से पूछा सैनिक 1 ने जवाब दिया । )
सैनिक 1 : मलिक यह लोग पहली बार हमारे समूह में दिखे और पूछने पर बताया कि यह दूसरे गांव से आए हैं।
सूरज : सही में हम दूसरे गांव से आए हैं कुछ दूरी पर यहां पर एक और गांव है वहां से !
तारा : हमारी बातों का यकीन करो हम झूठ नहीं बोल रहे ।
कुशीम : तुम्हारी बातों से लग रहा है तुम झूठ ही बोल रहे हो इस दुनिया में इस समूह के अलावा और कोई समूह ही नहीं है किसे बेवकूफ बना रहे हो तुम लोग ?
तारा : ऐसा कुछ भी नहीं है एक दुनिया में कई सारे समूह हो सकते हैं ।
( कुशीम ने तीसरे सैनिक की ओर इशारा किया तीसरे सैनिक ने अपनी जेब से रुमाल निकालकर तारा के मुंह पर बांध दिया तारा बोल भी नहीं पा रही थी तभी कुशीम ने कहा। )
कुशीम : औरतों को बोलने की इजाजत नहीं होती उन्हें जैसा कहा जाए वैसा ही करना चाहिए ।
सूरज : ये गलत है किसने कहा है औरत को बोलने की इजाजत नहीं होती और तुम कौन होते हो इजाजत देने वाले ?
कुशीम : ( गुस्से में ) अपनी बकवास बंद करो मैं यहां का मालिक हूं कुछ भी कर सकता हूं किसी की भी जान ले सकता हूं।
सूरज : यहां का मालिक केवल एक है भगवान और कोई नहीं !
कुशीम : बहुत समझदारी छा रही है ना तुम्हें अब निकलेगी तुम्हारी सारी समझदारी ।
लीला : अजीब है इसकी लीला बापूजी के सामने बोलने चला है बापूजी इसे मौत दीजिए यह मौत के लायक ही है ।
( तरा ने अपना सर ना में हिलाया तभी कुशीम ने कहा । )
कुशीम : नहीं बहू मौत बहुत छोटी चीज है इन दोनों को मौत नहीं दी जाएगी जरा सोचो शैतान के लोग मेरी गुलामी करेंगे तो हमारा सम्मान और बढ़ेगा।
लीला : आपकी सोच बहुत ऊंची है बापूजी आपका कोई मुकाबला नहीं कर सकता ।
सूरज : गलत इनकी सोच वहां पर खत्म होती होगी जहां पर भगवान की सोच शुरू होती है ।
कुशीम : बहुत भरोसा है ना तुम्हें अपने भगवान पर तो आज देखते हैं भगवान जीता है या यहां पर खड़ा मलिक।
(कुशीम ने तीसरे सैनिक को तारा के मुंह पर बांदा कपड़ा खोलने का इशारा किया और दोनों को बाहर मैदान में ले गए जहां पर दो बड़े स्तंभ खड़े थे सानिकों ने तारा और सूरज को उस स्तंभ से बांध दिया गर्मी का मौसम था और धूप सीधा उनके चेहरे पर आ रही थी तभी कुशीम ने कहा।)
कुशीम : ज्यादा बोलने की सजा यही होती है इन लोगों को कल सुबह 7:00 बजे दरबार में लाया जाए उससे पहले यह लोग यही बंदे रहेंगे ।
( कुशीम ने सैनिकों को आदेश दिया सैनिकों ने हां में सिर हिलाया तभी कुशीम और सब लोग वहां से जा रहे थे लेकिन लीला ने सबको रोकते हुए कहा।)
लीला : अजब है आपकी लीला बापूजी इतनी आसान सजा देकर माफ कर रहे हैं ।
मनोहर : लीला सजा कोई भी आसान नहीं होती ।
कुशीम : बहु सही कह रही है मनोहर इनकी सजा बहुत आसान है सैनिक 2 शुरू करो !
( कुशीम को सुनने के बाद सैनिक 2 सूरज के सामने आकर खड़ा हो गया और अपने दोनों हाथ को एक खास तरह की मुद्रा में ले आया तभी कुशीम ने सैनिक 2 को हां का इशारा किया सैनिक को इशारा मिलते ही सैनिक ने सूरज के पेट में मुक्के जड़ने शुरू किए सूरज दर्द के मारे तिलमिला रहा था वहीं दूसरी तरफ तारा रोते हुए सूरज को बचाने के लिए उस स्तंभ से निकलने की कोशिश कर रही थी लेकिन वो ऊपर से नीचे तक रस्सियों में लिपटी हुई थी वह हील भी नहीं पा रही थी तभी कुशीम ने कहा । )
कुशीम : कोई फायदा नहीं है तुम्हारे इन सब चीजों का मेरे अगले इशारे तक सैनिक नहीं रुकेगा ।
तारा : ( रोते हुए ) ऐसा मत करो छोड़ दो भाई को उसने क्या किया है ?
कुशीम : मेरे साथ बदतमीजी करने की कोशिश ।
तारा : माफ कर दीजिए भाई को छोड़ दीजिए ।
कुशीम : नहीं बिल्कुल नहीं सैनिक जरा अपनी रफ्तार बढ़ाओ ।
तारा : ( चिल्लाते हुए ) नहीं....!
( सैनिक ने कुशीम का कहा मानते हुए अपनी रफ्तार बढ़ा दी सूरज के मुंह से खून निकलने लगा तभी मनोहर ने कहा।)
मनोहर : बस किजिए बापूजी आपको इन्हें अपना गुलाम बनाना था अगर इस तरह तड़पाते रहेंगे तो यह गुलाम कैसे बनेंगे कैसे करेगें आपकी सेवा वो तो ऐसे ही मर जाएगा अपने उन्हें अपना गुलाम बनाना था ना तो रोक दीजिए सैनिक को !
कुशीम : मनोहर सही कह रहा है सैनिक रुको ।
( कुशीम का इशारा मिलते ही सैनिक दो रुक गया और पीछे हो गया सूरज अधमरी हालत में वही बंधा हुआ था तभी कुशीम ने कहा । )
कुशीम : मेरी इजाजत के बगैर इन लोगों के साथ कुछ भी नहीं होना चाहिए चाहे कुछ भी हो ।
( तभी कुशीम में मनोहर की तरफ देखते हुए कहा )
कुशीम : मनोहर इन दोनों की जिम्मेदारी तुम्हारी लेकिन याद रहे अगले 24 घंटे तक ना ही इन्हें खाना मिलना चाहिए ना ही पानी ।
लीला : गजब है आपकी लीला बापूजी कितने दयालु हैं आप अपने सूरज को इतनी आसानी से छोड़ दिया ।
( तारा रो रही थी उसने रोते हुए सूरज को उठाने की कोशिश की । )
तारा : ( रोते हुए ) भैया उठ जाइए एक बारी मेरी तरफ देख लीजिए आपने वादा किया था आप अपने आप को कुछ नहीं होने देंगे उठिए ना !
( तभी कुशीम तारा के सामने आया और उसका मुंह पढ़ते हुए कहा )
कुशीम : ए लड़की चिंता मत कर जिंदा है मरा नहीं है ।
( इतना कह कर कुशीम वहां से चला गया मनोहर वहीं तारा और सूरज को देख रहा था तारा अभी भी सूरज को उठाने की कोशिश कर रही थी लेकिन वह कुछ नहीं कर पा रही थी तारा और सूरज के आस पास चार सैनिक खड़े थे मनोहर बड़े ही ध्यान से उन चारों को देख रहा था कुछ घंटे बीत गए तारा और सूरज भूख और प्यास के मारे परेशान थे सूरज बेहोशी की हालत में बार-बार पानी मांग रहा था तारा उसकी हालत देख रोती जा रही थी तभी उसने एक सैनिक से कहा। )
तारा : ( रोते हुए ) कम से कम कुछ पानी ही पिला दीजिए ।
सैनिक 3 : तुमने सुना नहीं अगले 24 घंटे तक तुम्हें ना खाना मिलेगा ना पानी !
( तभी मनोहर ने सैनिकों के पास जाते हुए कहा। )
मनोहर : तुम लोग इतनी धूप में क्यों खड़े हो सजा इन लोगों को मिली है तुम्हें नहीं जाकर आराम करो मैं यहां पर खड़ा हूं।
( चारों सैनिक मनोहर के पास आए और कहा । )
सैनिक 3 : लेकिन छोटे मालिक हम आपको इस तरह अकेले छोड़कर कैसे जा सकते हैं ?
मनोहर : यह मेरा आदेश है जाओ खाना खाकर आओ मैं यही खड़ा हूं इन लोगों का ख्याल रख रहा हूं ।
सैनिक 2 : आप कितने अच्छे हैं धन्यवाद छोटे मालिक!
( इतना कहकर चारों सैनिक वहां से चले गए महल में दूर-दूर तक कोई नहीं था दोपहर के 12:00 रही थी सूरज सर पर था इस कारण महल में ज्यादा तर सिपाही और कर्मचारी महल के अंदर ही थे मनोहर ने आस- पास देखा और वहां से गायब हो गया तारा सूरज को उठाने की कोशिश कर रही थी और रोती जा रही थी तभी तारा ने रोते और चिल्लाते हुए कहा । )
तारा : ( रोते और चिल्लाते हुए ) अरे कोई है जरा सी भी इंसानियत बची है तो कम से कम पानी ही पिला दो।
( तभी वहां पर एक बुर्का पहने आदमी आया हैरान की बात थी उसने काले रंग के कपड़े पहने थे जो कि उस जगह पर केवल अमीर लोग ही पहन सकते थे आदमी के हाथ में दो खाने की थाली और दो बोतल पानी था आदमी दोनों के पास आया और खाना और पानी को नीचे रखा तभी तारा ने कहा । )
तारा : ( रोते हुए )आप कौन हैं आप यहां क्यों आए हैं ?
आदमी : तुम्हारे सामने खाने क्योंकि बूखों के सामने खाने में ज्यादा मजा आता है।
( तारा चुप हो गई तभी आदमी ने अपनी बात आगे बढ़ाई )
आदमी : अरे दो प्लेट खाना मैं अकेला तो नहीं खाऊंगा ना सीधी सी बात है तुम दोनों के लिए खाना लाया हूं ।
तारा : सच में !
आदमी : लाया तो तुम लोगों के लिए ही था लेकिन अगर तुम चाहो तो मैं इसे वापस ले जा सकता हूं मुझे कोई दिक्कत नहीं है ।
तारा : नहीं ही नहीं हमें सुबह से कुछ नहीं खाया पिया प्लीज हमारी रसियाँ खोल दो ।
आदमी : माफ करना लेकिन मैं ऐसा तो नहीं कर सकता सिपाही कभी भी लौट सकते हैं इससे पहले की कोई हमें यहां पर देख ले तुम लोग पानी पी लो और खाना खा लो ।
तारा : लेकिन ऐसा नहीं हो सकता भाई बेहोश है उसे इन दरिंदों ने बहुत मारा है ।
आदमी : मैं जानता हूं तुम चिंता मत करो
(आदमी ने पानी की बोतल खोली और थोड़ा पानी सूरज के मुंह पर मारा सूरज को होश आया तभी सूरज ने धीमे स्वर में कहा । )
सूरज : ( धीमे स्वर में ) पानी! पानी !
( आदमी ने पानी की बोतल सूरज के मुंह पर लगा दी सूरज पानी पी रहा था तभी आदमी ने सूरज के मुंह से बोतल हटाई और तारा को पानी पिलाया तभी तारा ने कहा। )
तारा : भाई अब ठीक है ।
सूरज : ( धीमी आवाज में ) मैं ठीक हूं मेरी चिंता मत करो ।
आदमी : ठीक है खाना खा लो हमारे पास कुछ समय है ।
सूरज : (धीमी आवाज में ) तुम्हारा दिमाग खराब है क्या हमारे हाथ बंधे हुए हैं हम खाना कैसे खा सकते हैं ।
आदमी : सच में मेरा दिमाग खराब है जो तुम लोगों को खाना खिलाने आ गया नहीं आना चाहिए था लेकिन अब आ ही गया हूं तो खिला कर ही जाऊंगा मैं यहां पर वेला खड़ा हूं मैं खिला देता हूं ।
( आदमी ने एक-एक कर तारा और सूरज को खाना खिलाना शुरू किया कुछ देर बाद आदमी को सैनिकों के पैरों की आवाज आने लगी तभी आदमी ने कहा। )
आदमी : मैं चलता हूं अगर सैनिकों ने मुझे यहां देख लिया तो गड़बड़ हो जाएगी ।
तारा : कम से कम अपना नाम तो बताते जाओ अगली बार अगर हमें मदद चाहिए हो तो तुमसे ही मांग ले।
( आदमी ने पीछे मोड़ते हुए कहा । )
आदमी : मेरा कोई नाम नहीं है तुम जिस नाम से बुलाना चाहो बुला सकती हो!
( इतना कह कर आदमी वहां से चला गया तभी चारों सैनिक सूरज और तारा के सामने आकर खड़े हो गए तभी सैनिक 2 ने कहा। )
सैनिक 2 : तो गया तुम्हें होश ।
सैनिक 3 : मार खाकर मजा तो बहुत आया होगा ।
सैनिक 1 : लगता नहीं इसका चेहरे के हाफ-भाव से तो पता नहीं लग रहा किसी को अच्छा लगा होगा ।
( तभी इधर-उधर देखते हुए कहा सैनिक 4 ने कहा । )
सैनिक 4 : छोटे मालिक कहां हैं ऐसा तो नहीं इन्होंने छोटे मालिक के साथ कुछ गलत कर दिया है ?
सैनिक 2 : लेकिन यह लोग तो ऊपर से नीचे तक बांधे हुए हैं यह कुछ कैसे कर सकते हैं ?
सैनिक 1 : इन लोगों का कोई भरोसा नहीं कुछ भी कर सकते हैं ये शैतान के यहां से जो आए हैं ।
तारा : हम लोग शैतान के यहां से नहीं आए हैं ।
सैनिक 3 : तुमसे किसी ने पूछा नहीं तुम कहां से आई हो बस इतना बताओ छोटे मालिक कहां है ।
सूरज : अरे हमें कैसे पता होगा कहां है तुम्हारे छोटे मालिक ।
( तभी सैनिक 2 ने तारा का मुंह को पकड़ लिया तो तभी सूरज में गुस्से से उसे सैनिक की ओर देखते हुए कहा। )
सूरज : ( गुस्से में ) छोड़ दे मेरी बहन को तेरी हिम्मत कैसे हुई उसे छूने की दरिंदे मैं तुझे जान से मार दूंगा ।
( तभी सैनिक 3 सूरज के आगे आकर खड़ा हो गया और उसके चेहरे पर एक मुक्का जड़ते हुए कहा। )
सैनिक 3 : इतना प्यार आ रहा है अपनी बहन पर तो बता कहां है छोटे मालिक ?
अब क्या होगा सूरज और तारा के साथ ?
कहां है मनोह क्या सैनिक सूरज और तारा के साथ कुछ गलत करेंगे या फिर वह आदमी आकर उन्हें बचा लेगा ?
लेकिन वह आदमी था कौन कहां से आया था और चाहता क्या था ? सूरज और तारा के साथ था या नहीं उनका दोस्त था यह दुश्मन ?
जानने के लिए पढ़िए" सच्चाई की लड़ाई?
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